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मरण का समाचार पूछा । फिर प्रभाचन्द्र मुनिको भी अपने साथ लेकर मालवा देशके लिये विशाखाचार्यने प्रयाण किया । तथा वे चलते चलते मार्गमें जैनधर्म का प्रचार करते हुए कासे मालव देशमें आ पहुंचे ।
समस्त संघसहित विशाखाचार्यको मालव देशमें आया हुआ जानकर रामल्य, स्थूलभद्र, स्थूलाचार्यने ( इनमें स्थूलाचार्य सबसे वृद्ध थे ) एक मुनिको भेज कर विशाखाचार्यके पास यह संदेशा भेजा कि आप उज्जैन पवार कर हम सब लोगोंको दर्शन 'दीजिये । हम भापके दर्शनोंकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। ____ संदेश लानेवाले मुनिको कपडे पहने हुए साथमें भोजनपात्र रक्खे हुए तथा हाथमें लाठी लिये हुए देखकर विशाखाचार्यके हृदयमें बहुत दुःख हुआ। उन्होंने उस मुनिसे कहा कि परिग्रहत्याग महाव्रत स्वीकार करते हुए तुम लोगोंने संसार वृद्धिका कारण, रागभाव का उत्पादक यह दंड पात्र वस्त्र आदि परिग्रह क्यों स्वीकार कर लिया है ? क्या जैन साधुका ऐपा स्वरूप होता है ?
संदेश लाने वाले साधुने नीची आंखें करके दुर्भिक्षका सारा वृत्तांत और प्रबल बाधाओंको हटाने के लिये लाठी, पात्र, कपडे आदि रखनेकी कथा विशाखाचार्यको कह सुनाई।
विशाखाचार्यने यह कह कर उसको विदा किया कि तुम लोगोंने दुर्भिक्षके समय इस देशमें रहकर ऐसा उन्मार्ग चलाया यह ठीक नहीं किया । खैर, अब छेदोपस्थापना प्रायश्चित्त लेकर इस प्रतिकूल मागको छोडकर फिर उसी पहले निग्रंथ नग्न मुनिवेशको तथा निर्दोष मुनिचारित्रको धारण करो। ___उस मुनिने स्थूलाचार्य अपरनाम शान्ति आचार्य के पास जाकर . विशाखाचायकी कही हुई समस्त बातें कह सुनाई। विशाखाचार्यका संदेश सुनकर स्थूलाचायको अपनी भूल मालूम हुई। उन्होंने समस्त मुनियोंको अपने पास बुलाकर विशाखाचार्यका संदेश कहा और मधुर शब्दोंमें समझाया कि मोक्ष प्राप्त करनेके लिये आप लोगोंने साधुचर्या म्वीकार करके महाव्रत धारण किये हैं । इन महावतोंमें तथा मुनि
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