________________
। २२३ ।
हमारे इस कल्पित लेखसे भी दिगम्बर मतकी प्राचीनता ही सिद्ध होती है।
विचार करनेका विषय है कि प्रथम तो स्थवीरपुर और उसमें रहनेवाला शिवभूति कोई पुरुष नहीं हुआ। किसी भी दिगम्बर शास्त्रमें उसका रंच मात्र उल्लेख नहीं । केवल कल्पित उपन्यास या गल्प के ढंगपर कपोल कल्पित कथा जोडनेके लिये श्वेताम्बरीय ग्रंथों में स्थवीर पुर और शिवभूति का नाम लिख दिया है।
दूसरे-यदि कपोलकलित रूपसे स्थवीरपुर नगर तथा उसके रहनेवाले शिवभूतिका अस्तित्व मान भी लिया जाय तथापि दिगम्बर संघकी उत्पत्ति वीर निर्वाण सं. ६०९ अथवा विक्रम सं. १३८ में न होकर लाखों करडों वर्ष पहले के जमाने से अर्थात् प्रथम तीर्थकरके समयसे ही सिद्ध होती है। क्योंकि इस कल्पित कथाका लिखने वाला स्वयं कहता है कि " एक समय गुरू ने जिनकल्पका स्वरूप वर्णन किया जिसमें उत्तम जिनकल्पी साधु वस्त्ररहित, (नग्न) पाणिपात्र हाथों में भोजन करनेवाले बतलाया " | यदि नग्न वेष (दिगम्बर ) के धारण करनेवाले साधु पहले समयमें नहीं होते थे तो श्वेताम्बरी गुरुने उनका स्वरूप कैसे बतलाया ? स्वरूप तो उसीका कहा जाता है जो कि पहले विद्यमान हो । गधेका सींग यदि संसारमें अब तक कहीं नहीं पाया गया तो अब तक उसकी मूर्तिका वर्णन भी किसीने नहीं किया । अतः सिद्ध होता है कि उत्तम जिनकल्पधारी साधु अर्थात दिगम्बर मुनि पहले जमानेसे ही पाये जाते थे।
यदि जिनकल्पधारी अर्थात् नग्न दिगम्बर साधु पहले जमानेसे ही होते आये हैं जैसा कि स्वयं मुनि आत्मानंदजी कल्पित कथाकारकी
ओरसे कहते हैं कि “ जम्बूस्वामीके मुक्तिगमन पीछे जिनकल्पका ( अर्थात दिगंबर संघका ) व्यवच्छेद हो गया । " तो फिर दिगम्बर संघकी मूल उत्पत्ति जम्बुस्वामीके ६०० छहसौ वर्ष पीछे कहना बडी भारी हास्यजनक मूर्खता है । इस प्रकार कल्पित कथाका लिखनेवाला स्वयं अपने मुखसे आप झुठा ठहरता है । उसको अपने आगे पीछेके कथनका रंचमात्र
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com