Book Title: Shwetambar Mat Samiksha
Author(s): Ajitkumar Shastri
Publisher: Bansidhar Pandit

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Page 236
________________ २२८ बालकका जन्म हुआ । उस बालक की भद्र ( मनोहर ) शरीर आकृति देखकर लोगोंने उस बालक का नाम भद्रबाहु रक्खा । भद्रबाहु अपनी तीक्ष्ण बुद्धिका परिचय मनुष्योंको जन्मसे ही कराने लगा । बात चीत करने, खेल खेलने, उठने बैठने आदि व्यवहारोंसे वह अपनी कुशाग्र बुद्धिका परिचय लोगोंको देने लगा । एक समय श्री गोवर्द्धन नामक श्रुतकेवली ( समस्त द्वादशांग श्रुतज्ञानके पारगामी ) गिरनार क्षेत्र की यात्रा करके अपने संघसहित लौट रहे थे । मार्ग में कोटपुर नगर पडा । इस नगर के बाहर भद्रबाहु अन्य लडकोंके साथ खेल रहा था । उस समय खेल यह हो रहा था कि कौन लडका कितनी गोलियोंको एक दूसरे के ऊपर चढा सकता हैं ? इस खेल के समय ही श्री गोवर्द्धन आचार्य भी वहां आ पहुंचे । उन्होंने देखा कि किसी लडकेने चार गोल एक दूसरे के ऊपर चढाई तो किसीने पांच गोलियां चढाई । आठ गोलियोंसे अधिक कोई भी बालक गोलियोंको एक दूसरे के ऊपर खडा न कर सका । किन्तु जब भद्रबाहुकी बारी आई तब भद्रबाहुने कुशलतासे एक दूसरे के ऊपर रखते हुए चौदह गोलियां चढाकर ठहरा दीं। जिसको देखकर खेलने वाले सभी लडकोंको तथा देखने वाले श्री गोवर्द्धन आचार्य के संघवाले सब मुनियोंको बडा आश्चर्य हुआ । गोवर्द्धन स्वामी आठ अंग निमित्तों के ज्ञाता थे यानी - आठ प्रकाएके निमितोंको देखकर आगामी होने वाली शुभ अशुभ बातको जानलेते थे। उन्होंने भद्रवाहकी खेलनेकी चतुराई का निमित्त देखकर तथा उसके शरीरके शुभ लक्षण जान कर निश्चय किया कि यह बालक ग्यारह अंग, चौदह पूर्वोका ज्ञाता श्रुतकेवली होगा । जिस समय उन्होंने उसका नाम पूछा तब तो उनको पूर्ण निश्चय हो गया कि श्री महावीर भगवानने जो भद्रबाहु नामक अन्तिम श्रुतकेली का होना बतलाया है सो वह श्रुतकेवली यह बालक ही होगा । ऐसा निर्णय करके श्री गोवर्द्धन स्वामीने भद्राबाहुसे कहा कि हे महामाग चलो. तुम हमको अपने घरपर ले चलो ! भद्रबाहु श्री गोवर्द्धन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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