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करके, छाछ आदिक पीकर, पात्र घो साफ कर; यदि उतने ही भोजनसे काम चल जावे तो ठीक, नहीं तो यदि अभी भूख और हो तो दुसरी बार भी भिक्षा मांग कर वह साधु भोजन कर सकता है । तथा वेला ( दो उपवास) करनेवाला साधु दो बार और तेला ( ३ उपवास ) करने वाला तीन वार भिक्षा के लिये जा सकता है । और चार, पांच आदि उपवास करने वाला साधु दिनमें कितनी ही बार भिक्षा के लिये जा सकता है ।
श्वेताम्बर, स्थानकवासी सम्प्रदायकी मुनिचर्या एक तो वस्त्र, पात्र, बिछोना आदि सामान रखने के कारण वैसे ही सरल थी किन्तु कुछ आहार पानीके विषयमें कष्ट होता सों यहां दूर कर दिया | अगर एकान्तर उपवास करे तो दो वार भोजन करले । यदि वेला करे तो दो वार आहार पाले, तेला करने वाला तीन वार, चौला करने वाला चार वार । सारांश यह कि जितने उपवास करे उतने ही वार पारणाके दिन भोजन कर सकता है । इस हिसाब से यदि किसीने ५ उपवास किये हों तो पारणाके दिन डेढ डेढ घंटे पीछे और जिसने १२ उपवास किये हों वह घंटे घंटे भर पीछे पीता रहे । एक साथ तीस तीस उपवास भी बहुतसे साधु या श्रावक भाद्रपद में किया करते हैं तो वे कल्पसूत्रके पूर्वोक्त लिखे अनुसार दिनमें ३० बार यानी दो दो घंटे में पांच पांच वार बराबर खाते पीते चले जावें । सारांश यह कि उनका मुख चलना उस दिन बंद न रहे तो कुछ अयोग्य नहीं ।
दिन भर खाता
अतः यदि इस प्रकार देखा जाय तो एक प्रकारसे मुनि तथा गृहस्थ के भोजन करने में विशेष कुछ अंतर नहीं रहा । गृहस्थ यदि प्रतिदिन दो बार भोजन करता है तो श्वेताम्बरीय मुनि किसी दिन एक वार, किसी दिन दो बार, कभी तीन बार और कभी एक वार भी नहीं इत्यादि अनियत रूपसे भोजन कर सकते हैं 1
इस विषय में विशेष कुछ न लिखकर हम अपने श्वेताम्बर भाइयोंके ऊपर इसको छोडते हैं । वे स्वयं इस शांतिसे विचार करें कि यह बात कहांतक उचित है ।
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