________________
केवल इष्ट, अबाधित और असिद्ध इन तीनो शब्दोंके पर्यायवाचक अभीप्सित, अनिराकृत, अप्रतीत ये दूसरे शब्द रख दिये है। लक्षण
और तात्पर्य एक ही है। ____ परीक्षामुखमें ३६ वां सूत्र " को वा त्रिधा हेतुमुक्त्वा समर्थयमानो न पक्षयति " है। इसके स्थानपर प्रमाणनयतत्वालंकारमें “ त्रिविधं साधनमभिधायैव तत्समर्थनं विदधानः कः खलु न पक्षप्रयोगमकीकुरुते " यह २३ वां सूत्र लिखा है। तात्पर्य और शब्दरचना में रंचमात्र भी अन्तर नहीं है।
उपनयका लक्षण परीक्षामुखके ५० वें सूत्रमें " हेतोरुपसंहार उपनयः " किया है तब वादिदेवमूरिने ४६ वे सूत्रमें “ हेतोः साध्यधर्मिण्युपसंहरणमुपनयः " यों किया है । विज्ञ पाठक दोनों सूत्रों के शब्द देखकर स्वयं समझ सकते हैं कि इन दोनो सूत्रोंमें जरा भी अन्तर नहीं है।
हेतुके भेद करते हुए परीक्षामुखमें ५७ वां सूत्र " स हेतुद्वेधोपलब्ध्यनुपलब्धिभेदात्" है। इस सूत्रके स्थानपर वादिदेवसूरिने ५१ वां सूत्र “ उक्तलक्षणो हेतुर्द्विकार उपलब्ध्यनुपलब्धिभ्यां भिद्यमानत्वात् " ऐसा लिखा है। इन दोनों सूत्रोंमें कुछ भी अंतर नहीं है ।
इसके आगेका सूत्र परीक्षामुखमें " उपलब्धिर्वि धिप्रतिषेधयोरनुपलब्धिश्च " यों लिखा है। उसी प्रकार प्रमाणनयतत्वालंकारमें " उपलब्धिर्विधि निषेधयोः सिद्धिनिबन्धनमनुपलब्धिश्च " ऐसा सूत्र लिखा है । विद्वान् पुरुष विचार करें। हेतुओंके भेदकथन, शाब्दिक रचना तथा 'तार्य रूपसे इन दोनों सूत्रोंमें कुछ भी अन्तर नहीं है । ___सत्तात्मक साध्यके समय अविरुद्ध, उपलब्ध्यात्मक हेतुके छह भेद करते हुए परीक्षामुखमें ५९ वां सूत्र “ अविरुद्धोपलब्धिर्विधौ पोढा व्याप्यकार्यकारणपूर्वोत्तरसहचरभेदात् " लिखा गया है । इस एक सूत्रकी नकल करते हुए वादिदेवमूरिने प्रमाणनयतत्वालंकारमें ६४ व ६५ वें " तत्राविरुद्धोपलब्धिर्विविसिद्धौ षोढा, साध्येनाविरुद्धानां व्याप्यकार्यकारणपूर्वचरोत्तरचरसहचराणामुपलब्धिरिति " ये दो सूत्र लिखे हैं। शब्दों में
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com