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तीसरी-सिद्धान्तविरुद्ध बात इस कथामें यह है कि भोगभूमिया मनुष्य स्त्री मर कर नरकको गये । भोगभूमिज मनुष्य तिर्यच नियमसे देवगतिको प्राप्त होते हैं इस बातको स्वयं श्वेताम्बर ग्रंथ भी स्वीकार करते हैं फिर हरिवर्षका युगलिया मरकर नरकमें कैसे जा सकता है ? ऐसे गडबडपूर्ण सिद्धान्तों और कथाओंसे श्वेताम्बरीय ग्रंथोंकी कोई भी बात सत्य नहीं मानी जा सकती है।
इस प्रकार हरिवंश उत्पत्तिका उक्त कथानक सिद्धान्तविरुद्ध है ।
केवलज्ञानीका घरमें निवास ! गृहस्थीको मोक्ष होना यह तो एक जुदी बात रही किन्तु एक दूसरी अद्भुत बात श्वेताम्बरीय ग्रंथोंमें और भी पाई जाती है । वह यह कि केवलज्ञानी धरमें छह मास तक रह सकते हैं। श्वेताम्बर आचार्य आत्मानंदजीने अपनी सम्यक्त्वशल्योद्धार पुस्तकके १५७ वें पृष्ठ पर लिखा है कि--
"कूर्मापुत्र केवलज्ञान पाने पीछे ६ महीने घरमें रहे कहा है (यह इंदिया विद्वान जेठमलजीका श्वेताम्बर सम्प्रदायपर आक्षेप है । अब आस्मानंदजी इसका उत्तर देते हैं-जो गृहस्थवासमें किसी जीवको केवलज्ञान होवे तो उसको देवता साधुका भेष देते हैं और उसके पीछे विचरते तथा उपदेश देते हैं । परन्तु कूर्मापुत्रको ६ महीने तक देवताने साधुका भेष नहीं दिया और केवलज्ञानी जैसे ज्ञानमें देखे तैसे करे । इस बातसे जेठमलके पेटमें क्यों शूल हुआ सो कुछ समझमें नहीं आता है।" ___आत्मानंदजीके इस लेखसे यह प्रमाणित हो गया कि कूर्मापुत्र नामक किसी गृहस्थको विना तपस्या त्याग आदि किये ही अपने धरमें केवलज्ञान हो गया और अर्हत हो जानेपर भी वह कूर्मापुत्र ६ मास तक साधारण मनुष्यों के समान घरमें ही रहे । क्योंकि तब तक किसी देवने वहांपर आकर उस कूर्मापुत्रके वस्त्र आभूषण आदि उतारकर वीतराग भेष नहीं बनाया था । शायद देव यदि भुलसे
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