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___" श्री भगवतीसूत्रमें कहा है कि केवलिको हसना, रमना, सोना, नाचना इत्यादि मोहनी कर्मका उदय न होवे और प्रकरणमें कपिल केवलीने चोरोंके आगे नाटक किया ऐसे कहा । ( इसका ) उत्तरकपिल केवलीने ध्रुपद छंद प्रमुख कहके चोर प्रतिबोधे और तालसंयुक्त छंद कहे तिसका नाम नाटक है परन्तु कपित केवली नाचे नहीं हैं।" __आत्मानंदजीके इस लेखसे यह प्रमाणित हो गया कपिल केवली. ने चोरोंके आगे नाटक किया था यह बात श्वेताम्बरी ग्रंथमें विद्यमान है। जेठमलजी की बलवती अखंडनीया शंकाका जो कुछ आगमविरुद्ध युक्तिशुन्य, उपहासजनक उत्तर दिया है उसको प्रत्येक साधारण मनुष्य भी समझ सकता है।
दूसरे-मोहनीय कर्म समूल नष्ट हो जाने पर न तो रागभाव रहता है और न द्वेषभाव । केवल उपेक्षा भाव रहता है ऐसा श्वेतांबरीय सिद्धान्त भी कहते हैं । फिर कपिल केवलीने चोरोंको प्रतिबोध करनेका क्यों उद्योग किया ? इच्छापूर्वक किन्हीं विशेष मनुष्योंका उपकार करना रागभावसे शुन्य नहीं । जब कि उन्होंने चोरोंको आत्मज्ञान करानेके विचारसे उनके सन्मुख नाटक तक खेला तब यह कौन कह सकता है कि चोरोंपर कपिल केवलीको अनुराग नहीं था। अन्यथा वे अपनी विशेष चेष्टा क्यों बनाते ?
तीसरे-ध्रुपद या तालसंयुक्त छंदोंका गाना भी मोहनीय कर्मका ही कार्य है । आत्मानंदजी अथवा अन्य कोई विद्वान् यह प्रमाणित नहीं कर सकते कि गायन गाना मोहनीय कर्मके विना भी हो जाता है। क्योंकि गायन अपना तथा अन्यका चित्त प्रसन्न करने के लिये ही गाया जाता है । इस कारण गायन कषायशुन्य नहीं हो सकता।
पांचवें- कपिल केवलीको केवल चोरों को प्रतिबोध करानेकी क्या आवश्यकता थी। और यदि प्रतिबोध ही कराना था तो नाटक करनेकी ही क्या जरूरत आ पडी थी । क्या उनके वचनमें इतनी शक्ति नहीं थी कि वे अपने उपदेशसे ही चोरोंको प्रतिबोध दे सकते हों ?
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