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इस प्रकार श्वेतांबर समाजके प्रसिद्ध गुरू महाराजने भी साधुके रात्रिभोजनका प्रतिवाद न करके उल्टे उसकी पुष्टि कर दी । यह बात कितनी अनुचित, साधुचर्याके विपरीत, हास्यजनक और शिथिलाचार पोषक है इसका विचार स्वयं पाठक महाशय कर लेवें । इतना हम अवश्य कहते हैं कि श्वेतांबरीय ग्रंथोंने साधुचर्याको इतना ढीला किया है कि उसकी कुछ बातें साधारण गृहस्थको भी लजानेवाली होगई हैं ।
चरबीका लेप.
संसार में सर्व साधारण रूपसे रक्त मांस हड्डी चमडा आदि पदार्थ अपवित्र माने जाते हैं । इसी कारण उनका उपयोग करना प्रायः सभी शास्त्रोंने निषिद्ध ठहराया है । लोहू मांस आदि पदार्थों के समान चरबी भी अपवित्र पदार्थ है । क्योंकि वह भी त्रस जीवों के शरीरका एक भाग है । अत एव किसी भी शास्त्रकारने चर्बीका व्यवहार करना उचित नहीं बतलाया है । किन्तु श्वेताम्बरीय जैन शास्त्रोंने अन्य मद्य, मांस आदि पदार्थों के समान ही चरबीका उपयोग करना भी बतला दिया है । यह आदेश किसी ऐसे वैसे भी श्वेताम्वर ग्रंथ में नहीं है किन्तु 'बृहत्कल्प ' सरीखे ग्रंथ में विद्यमान हैं ।
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इस बात को स्वयं श्वेतांबर आचार्य आत्मानंदजींने अपने " सभ्यक्त्वशस्योद्धार " ग्रंथ में १६७ वें पृष्ठपर यों लिखा है ।
" श्री वृहत्कल्पसूत्र चरबीका लेप करना कहा है । " यदि कोई अजैन मनुष्य जैन धर्मके अहिंसातत्वकी ऐसे विधानोंका आश्रय लेकर इसी उडावे और जैन धर्मकी निंदा करे तो हमारे श्वेतांबरी भाई उसको क्या उत्तर दे सकेंगे ? इस बातका स्वयं पाठक महोदय विचार करें |
संघभेदका इतिहास.
श्वेताम्बरीय ग्रंथकारोंने अपने श्वेतांबर सम्प्रदाय की उत्पत्तिकी जो बनावटी कल्पना की है उसको सुनकर हसी आती है । उनका
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