________________
। २१८ ।
बनावटी कथन स्वयं उनको असत्य सिद्ध करते हुए दिगम्बर सम्प्रदायको पुरातन सिद्ध करता है।
इस बनावटी कथाको प्रसिद्ध श्वेताम्बर साधु आत्मानन्दजीने तत्वनिर्णयप्रासाद ग्रंथके ५४२-५४३ और ५४४ वें पृष्ठोंपर यों लिखा है
" रहवीर-रथवीरपुर नगर तहां दीपक नामा उद्यान तहां कृष्णनामा आचार्य समोसरे ( पधारे ) तहां स्थवीरपुर नगरमें एक सहसमल्ल शिवभूतिनाम करके पुरुष था तिसकी भार्या तिसकी माताके साथ [ सासुके साथ ] लडती थी कि तेरा पुत्र दिन २ प्रति
आधी रात्रिको आता है मैं जागती और भूखी पियासी तब तक बैठी रहती हूं। तब तिसकी माताने अपनी बहूसे कहा कि आज तू दरवाजा बंद करके सो रहे और मैं जागूगी । बहू दरवाजा बंद करके सो गई माता जागती रही । सो अर्द्धरात्रि गये आया दरवाजा खोलनको कहा । तब तिसकी माताने तिरस्कारसे कहा कि इस वखतमें जहां उधाडे दरवाजे हैं तहां तु जा, सो वहांसे चल निकला फिरते फिरते ( उस ने ) साधुयों का उपाश्रय उधाडे दरवाजा देखा तिसमें गया नमस्कार करके कहने लगा मुझको प्रवजा [ दीक्षा ] देओ। तब आचार्योने ना कही तब आप ही लोच कर लिया। तब आचार्योंने तिसको जैनमुनिका वेष दे दिया । तहांसे सर्व विहार कर गये। कितनेक काल पीछे फिर तिस नगरमें आये । राजाने शिवभूतिको रत्नकंबल दिया तब आचार्योंने कहा ऐसा वस्त्र यतिको लेना उचित नहीं । तुमने किस वास्ते ऐसा वस्त्र ले लीना ? ऐसा कहके तिसको विना ही पूछे आचार्योने तिस वस्त्रके टुकडे करके रजोहरणके निशीथिये कर दीने । तब सो गुरुओंसे कषाय करता हुआ।"
__ " एकदा प्रस्तावे गुरुने जिनकल्पका स्वरूप कथन करा जैसे जिन कल्पि साधु दो प्रकारके होते हैं एक तो पाणिपात्र ( हाथोंमें भोजन करने वाला ) और ओढनेके वस्त्रों रहित ( नग्न ) होता है। दूसरा पात्रधारी ( खाने पीनेके बर्तन अपने साथ रखने वाला ) वस्रों करके
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com