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असमर्थ जानकर वह अपने निवासस्थान प्रथम स्वर्गको चला गया । भगवानको जबतक अन्तराय तथा उपद्रव होते रहे तब तक सौधर्म स्वर्गके समस्त देव और इन्द्र चिन्तातुर एवं दुःखित रहे ।
इसके पीछे कल्पसूत्र के ७४ वें पृष्ठपर यो लिखा है
" पछी भ्रष्ट थएल छे प्रतिज्ञा जेनी तथा श्याममुखवाला एवा ते संगम देवने त्यां आवतो जोइने, इन्द्रे पराङ्मुख थइने देवोने कां के, अरे देवो आ दुष्ट कर्मचंडाल आवे छे माटे तेनुं दर्शनपण महापापो आपनारुं थाय छे. वली आणे आपणनो मोटो अपराध करेलो छे केमके तेणे आपने स्वामिने कदर्थना करी छे तेम आपणाथी डन्यो नथी, तेम पाथी पण डर्यो नथी, माटे दुष्ट अने अपवित्र एवा, देवने स्वर्गमांथी कहाडी मेलो | एवी ते आज्ञा अपाएला इंद्रनां सुभटोए तेने मुष्टि लाकडी आदिकनां मारथी मारीने तथा बीजा देव देवीओए पण तेने निभूछीने हडकाया कुतरानी पेठे कहाडी मेल्यो । तेथी ठरी गएला अंगरानी पेठे निस्तेज थयो थको ते परिवारविना फक्त एकाकी मंदराचलनां शिखरपर गयो तथा त्यां पोतानुं बाकी रहेलं एक सागरोपमनुं आयुष्य ते संपूर्ण करशे । "
अर्थात -पीछे टूट चुकी हैं प्रतिज्ञा जिसकी ऐसे श्याममुखवाले संगमदेवको वह आता देखकर इन्द्रने देवोंसे कहा कि हे देवो ! यह दुष्ट, चांडाल संगम आरहा है । इसको देखना भी महापाप दायक है । इसने हमारा बहुत भारी अपराध किया है क्योंकि इसने हमारे स्वामी महावीर भगवानका अनादर किया है । उससे यह नहीं डरा तथा पापसे भी नहीं डरा । इस कारण दुष्ट, अपवित्र ऐसे इस देवको स्वर्ग में से निकाल दो। इन्द्रकी ऐसी आज्ञा पाकर इंद्रके योद्धाओंने उसको लकडी, मुक्के आदिकी मारसे मारा तथा अन्य देव देवियोंने उनको भर्त्सना देकर फटकारा । कुत्ते के समान स्वर्गंसे निकाल बाहर किया । इस अपमानसे बुझे हुए अंगारेके समान तेजरहित होकर वह अपने कुटुम्बविना अकेला मंदर पर्वत पर चला गया । वहांपर वह अपनी शेष रही एक सागरकी आयुको पूर्ण करेगा ।
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