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१० । ५ वर्ष तक नहीं आते तो कूर्मापुत्रको १० ।५ वर्ष तक भी घर में रहना पडता । और यदि आयुसमाप्तिके पहले संयोगवश किसी देवका उनके घर आगमन न होता तो उनको मोक्ष होने तक घरमें रहना पडता । तथा अन्त तक वे सराग गृहस्थ के समान वस्त्र आभूषणोंसे सुसज्जित रहते । इस प्रकार कूर्मापुत्र केवलीका विहार देवोंके अधीन रहा । अनन्तचतुष्टय प्राप्त कर लेने पर भी वे पूर्ण स्वतंत्र नहीं हो पाये ।
घर में रहते हुए वे अपने घरके बने हुए षड्रस भोजन भी करते होंगे । क्योंकि श्वेतांबर मतानुसार केवलज्ञानी भोजन करते हैं जो कि उनके लिये बनाया जाता होगा इस प्रकार उद्दिष्टदोष वाला भोजन भी वे साधारण मनुष्यों के समान करते होंगे ।
आत्मानंदजी कहते हैं कि " केवलज्ञानी जैसे ज्ञानमें देखे तैसे करे " सो इससे क्या आत्मानंदजी, केवलज्ञान हो जानेपर भी इच्छापूर्वक कोई काम किया जाता है ?
न मालूम यह घटना किस सिद्धान्तवाक्यके अनुसार सत्य प्रमाणित हो सकती है ? और आत्मानंद जीका युक्तिशून्य उत्तर किस सैद्धान्तिक नियम के अनुसार चरितार्थ हो सकता है ? तथा क्या केवलज्ञान हो जाने पर भी केवलज्ञानी देवों द्वारा चलाने पर ही चल सकते हैं ?
क्या केवलज्ञानी नाटक भी खेलते हैं ?
श्वेताम्बरीय कथा ग्रंथों में ऐसी ऐसी कथाएं उल्लिखित हैं जो कि सिद्धान्तविरुद्ध तो हैं ही किन्तु साथ ही वे अच्छी हास्यजनक मी हैं । हम यहांपर एक कथा ऐसी ही बतलाते है ।
श्वेताम्बरीय परममान्य ग्रंथ भगवती सूत्रमें कपिल नामक केवली के विषय में ऐसा लिखा हैं कि " उन्होंने चोरोंको प्रतिबोध ( आत्मज्ञान ) कराने के लिये नाटक खेला था " । इसी बातको श्वेताम्बरी आचार्य आत्मानंदजीने सम्यक्त्वशल्योद्धार पुस्तक के १५१ वें प्रष्ट पर इस तरह से समाधान सहित दिखाया है
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