________________
(२१. )
कि उनकी शक्ति नामकर्मसे भी बढकर है। यदि ऐसी शक्ति उनमें विद्यमान हो तो वे अपने शरीरका भी रंग, रूप, प्रभा आदिको बढाकर ऊंचे देवोंसे भी अधिक सुंदर कर सकते हैं। किंतु ऐसा न तो होता है और न कोई साधारण देव ही क्या इंद्र अहमिंद्र भी ऐसा कर सकता है। अतः पहली सिदांतविरुद्ध बात तो उनके शरीरको छोटा करनेकी है।
दूसरी-सिद्धांतविरुद्ध बात यह है कि उस किस्विषक देवने उन युगलियोंकी आयु कम कर दी । हमारी समझमें नहीं आता कि कर्भसिद्धान्त के जानकार श्वेताम्बरीय ग्रंथकारोंने यह बात कैसे लिख दी है ? क्या कोई देव किसी भी जीवकी आयु कम कर सकता है ? यदि ऐसा ही हो तो सब कुछ कर सकने वाले देव ही हो गये। पूर्व उपार्जित कर्मों में कुछ भी शक्ति नहीं हुई । आयुकर्म नाम मात्रका हुआ । क्योंकि हरि वर्षके युगलियाके दो पल्यकी अखंडनीय आयुका उदय था जिससे कि उसे अवश्य ही दो पन्य तक जीवित रहना चाहिये था। किन्तु किरिखषक देवने उस की आयु घटा दी । इसका अभिप्राय यह होता है कि या तो श्वेताम्बरोंका कर्मसिद्धान्त झूठा है क्यों कि आयुको देवलोग भी घटा सकते हैं। भले ही वह आयु कमकी लंबी स्थितिके कारण बडी क्यों न हो । अथवा यदि श्वेताम्बरी कर्मसिद्धान्त सत्य है और तदनुसार आयु घटाने बढानकी शक्ति अन्य किसीमें नहीं है स्वयं आयु कर्ममें ही विद्यमान है तो कल्पसूत्र, प्रवचन सारोद्धार आदि ग्रंथोंको झूटा कहना पड़ेगा। ___भोगभूमिके युगलियोंकी बँधी आयु किसी भी प्रकार कम नहीं हो सकती इस बातको श्वेताम्बरोंका मान्य तत्वार्थाधिगम सूत्र अपने दूसरे अध्यायके ५२ वें मूत्र:
" औपपातिकचरमदेहोत्तमपुरुषासंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुषः । " से प्रगट करता है । ऐसी अवस्थामें स्वयं श्वेताम्बर लोग तत्वार्थाधिगमसूत्र और कल्पसूत्रमें से किसी एक ग्रंथको प्रामाणिक कह सकते हैं और उन्हें दूसरे ग्रंथ को अप्रामाणिक अवश्य कहना पडेगा ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com