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उस समय वहाँका राजा मर गया था उसका उत्तराधिकारी कोंई पुत्र नहीं था इस कारण उस देवने उस राजसिंहासनपर उस भोगभूमिया युगलको बैठा दिया । नरक आयुका बंध करानेके लिये उसने उन दोनोंको ( स्त्री पुरुषको ) मद्य, मांस खिलाया तथा अपनी शक्तिसे उनकी आयु थोडी करके उनको नरक भेज दिया । उस राजा के वंशका नाम ' हरिवंश ' प्रसिद्ध हुआ ।
इसी बात को समाप्त करते हुए कल्पसूत्रकारने कल्पसूत्रके १९ वें पृष्ठपर यों लिखा है
" तेथी ते बनेने हुं दुर्गतिमां पाहुं, आवुं चितवी पोतानी शक्तिथी देह संक्षेप करी तेओने अहीं लाग्यो लावीने राज्य आपी तेमोने सात व्यसन शीखडाव्या । ते पछी तेओ तेवा व्यसनी थइ मृत्यु पामी नरके गया । तेनो जे वंश ते हरिवंश कहेवाय । अहीं जुगलियाने महीं लाववा, शरीर तथा आयुष्यनो संक्षेप करवो अने नरकम ज ए सर्व आश्चर्य छे । "
यानी इसलिये कैसे इन दोनोंको (स्त्री पुरुषों को ) दुर्गति (नरक) में डाल दूं ऐसा विचार कर अपनी शक्तिसे उनका शरीर छोटा बनाकर उनको भरतक्षेत्र में लाया। यहां लाकर उनको राज्य देकर उन्हें सात व्यसन सेवन करना सिखलाया । तदनंतर वे दोनों व्यसनी होकर, मरकर नरक गये । उनका वंश हरिवंश कहलाया । यहाँपर भोगभूमिके जुगलियाको भरतक्षेत्रमें लाना, उनके शरीर, आयुको घटाना तथा उनका मरकर नरक में जाना यह सब आश्चर्य है ।
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इस सातवें अछेरे के कथनमें अनेक सिद्धान्तसे विरुद्ध बातें हैं । पहली तो यह कि उस युगलियाका शरीर छोटा कर दिया। क्योंकि देवों में यद्यपि अपने शरीर में अणिमा महिमा आदि रूपसे छोटा बडा रूप करनेकी शक्ति होती है। किंतु उनमें यह शक्ति नहीं होती कि नामकर्मके उदयसे प्राप्त हुए किसी मनुष्यशरीरके आकारको घटा बढा देवें। क्योंकि यह कार्माण शक्तिका कार्य है । देव ही यदि अन्य जीवों के शरीरका आकार छोटा बडा कर देवें तो समझना चाहिये
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