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हेमचन्द्राचार्यसे पहले हुए हैं और इन्होंने ' नेमिनिर्वाण, वाग्भटालंकार ऋषभदेवचरित आदि अनेक महाकाव्य, अलंकार, वैद्यक आदि ग्रंथ निर्माण किये हैं। इन्होंने काव्यानुशासन नामक साहित्य ग्रंथ गद्यरूपमें लिखकर स्वयं उसकी टीका भी लिखी है। इसी ग्रंथकी छाया लेकर हेमचन्द्राचार्यने भी गद्यरूपमें स्वोपज्ञटीकासहित उसी नामका 'काव्यानुशासन ' ग्रंथ लिखा है । देखिये
कवि वाग्भट्टने प्रथम ही काव्यरचनाका उद्देश बतलाया है
काव्यं प्रमोदायानर्थपरिहाराय व्यवहारज्ञानाय त्रिवर्गफललाभाय कान्तातुल्यतयोपदेशाय कीर्तये च ।
इसके स्थानपर हेमचन्द्राचार्यने पहला सूत्र यह लिखा है'काव्यमानन्दाय यशसे कान्तातुल्यतयोपदेशाय च ।
उपर्युक्त दोनों वाक्य बिलकुल समान हैं। दो एक शब्दोंका अन्तर है। काव्यरचनाका हेतु कविवर वाग्भट्टने यह लिखा है
'व्युत्पत्यभ्याससंस्कृता प्रतिभास्य हेतुः । इसके स्थानपर हेमचन्द्राचार्यने यों लिखदिया है-- 'प्रतिभास्य हेतुः' अभ्यासका लक्षण वाग्भट्टने यह किया हैकाव्यज्ञशिक्षया परिशीलनमभ्यासः इसीको हेमचन्द्राचार्यने यों लिख दिया हैकाव्यविच्छिक्षया पुनः पुनः प्रवृत्तिरभ्यासः काव्यका लक्षण वाग्भट्टने यह लिखा है किशब्दाौँ निर्दोषो सगुणौ प्रायः सालंकारौ काव्यम् हेमचन्द्राचार्यने इसको यों लिख दिया है
अदोषौ सगुणौ सालंकारौ शब्दार्थों काव्यम् काव्यके दोष वाग्भट्टने ये बतलाये हैंनिरर्थकनिर्लक्षणाश्लीलाप्रयुक्तासमर्थानुचितार्थश्रुतिकटुक्लिष्टा
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