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वर्षा त्या वेगहर्षादिव्यभिचारी उत्साहा भिगनः स्थायिभावश्ववणीयतां
गतो वीररसतां याति ।
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इसकी प्रतिलिपि हेमचन्द्राचार्य ने अपने काव्मानुशासन के ७७ वें पृष्ठपर यों की है-
प्रतिनायक वर्तिनय विनयासंमोहाध्यवसायवलशक्तिप्रतापभाव विक्रमा-विक्षेदिविभावः स्थैर्यधैर्यशौर्यगाम्भीर्यत्याग वैशात्द्याद्यनुभावो धृतिस्मृयौगर्वामर्षामत्या वेग हर्षादिव्यभिचारी उत्साहः स्थायिभावश्ववणीयतां गतो धर्मदायुद्धभेदाचा वीरः |
इन दोनों लक्षणों में भी रंचमात्र अन्तर नहीं । वीरके जो तीन भेद यहां अधिक जोडे हैं वे भी वाग्भट्टने आगे बताये हैं । इसी प्रकार बीभत्स रसके लक्षण भी देखिये । महाकवि वाग्भट्टने अपने काव्यानुशासन के ५६ वें पृष्ठपर इस रसका लक्षण यों लिखा है
अहृद्यानामुद्वान्तत्रणपूतिकृमिकीटादीनां दर्शनश्रवणादिविभावोऽङ्गसंकोचहल्लासनासा मुख विकूणनाच्छादन निष्ठीवनाद्यनुभावोऽस्माम्यमोहगदादिव्यभिचारी जुगुप्सा भिधानः स्थाविश्ववर्णयतां गतो बीभत्सतामाप्नोति । इस गद्यकी हूबहू नकल हेमचन्द्राचार्यने अपने काव्यानुशासन के ७९ वें पृष्ठ पर इस प्रकार की हैं
अहृद्यानामुद्वान्तव्रणपूतिकृमिकीटादीनां दर्शनश्रवणादिविभावा अङ्गः सङ्कोचहलासना सामुखविकूणनाच्छादन निष्ठीवनाद्यनुभावाऽपस्मारौम्यमोहगदादिव्यभिचारिणी जुगुप्सा स्थायिनावरूपा चवणीयतां गता बीभत्सः । पाठक महानुभाव स्वयं समझ सकते हैं कि उपर्युक्त दोनों गधों में शब्द तथा अर्थ रूपसे कुछ भी अन्तर नहीं है । इसी प्रकार अद्भुत, भयानक, शान्त, रौद्र आदि रसका लक्षणरूप गद्य भी परस्पर बिलकुल. मिलता है । उसको पाठक स्वयं दोनों ग्रंथ सामने रखकर मालूम कर सकते हैं। एवं अन्य अनेक बातें भी इन दोनों काव्यानुशासनों की आपस में गद्य, पद्य अर्थरूपसे मिलती जुलती हैं। जिससे कि निःसन्देह यह सिद्ध होजाता है कि हेमचन्द्राचार्यने महाकवि वाग्भट - विरचित काव्यानुशासनकी प्रतिलिपि करके ही अपना काव्यानुशासन ग्रंथ बनाया है ।
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