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नहीं स्वीकार कर सकते । अतः मानना होगा और हमारी निजीभी धारणा है कि " श्वेताम्बरीय ग्रंथ विक्रम संवतकी छठी शताब्दी से बनने प्रारम्भ हुए हैं ।" यह ही सुनिश्चित विश्वास हमारे श्वेताम्बरीय भाइयों का है । क्योंकि उनके श्रद्धास्पद मुनि आत्मारामजी स्पष्ट लिखते हैं कि पहले ग्रंथ कंठाग्र रक्खे जाते थे, लिखे नहीं जाते थे | फिर स्मरणशक्तिकी निर्बलता देख कर "देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणजीने जो उनको अपनी गुरुपरम्परासे स्मरण था उसको सुरक्षित रूपसे चलाने के लिये ग्रंथोंमें लिखकर रख दिया । देवर्द्धिगणीनाश्रमणजी मुनि आत्मारामजी के ही लिखे अनुसार वीर निर्वाणसे ९८० वर्ष पीछे यानी विक्रम संवत के ५१० पांचसौ दश वर्ष व्यतीत हो जानेपर हुए થે | इसका तात्पर्य aft निकला कि श्वेताम्बरीय ग्रंथरचना देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण जी द्वारा विक्रम संवतकी छठी शताब्दी में हुई; इसके पहले उनका कोई भी ग्रंथ नहीं बना था ।
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परन्तु दिगम्बरीय ग्रंथोंका निर्माण विक्रम संवत् से भी पहले सुरू हुआ हैं । श्री भृतवलि आचार्यने सबसे प्रथम पट्खंड आगम ' नामक ग्रंथ बनाया था । श्री भूतबलि आचार्य श्री कुंदकुंदाचार्य से बहुत वर्ष पहले हुए हैं जब कि श्री कुंदकुंदाचार्य जिन्होंने कि समयसार आदि अनेक ग्रंथ लिखे; वे विक्रम संवतकी पहली शताब्दी में यानी पुष्ट ऐतिहासिक प्रमाणोंसे विक्रम संवत् ४९ हुए I
तात्पर्य - इस कारण सिद्ध हो गया कि श्वेताम्बरीय शास्त्रोंके निर्माण होने से सैकड़ों वर्ष पहले दिगम्बरीय ऋषियोंने अनेक ग्रंथ बना दिये थे । सिद्धांत विरुद्ध कथन. भोगभूमिजका अकाल मरण.
कुछ आयुकाळ शेष रहने पर विष, शस्त्र आदि किसी आकस्मिक कारण से आयुसमाप्ति प्रथम ही जो मृत्यु हो जाती है उसको अकालमरण कहते हैं । अकालतरण कर्मभूमिवाले साधारण जो त्रेसठशलाका पुरुषोंसे न हों ऐसे मनुष्य पशुओंकाही होता है । शेष किसीका नहीं होता । इस सिद्धान्त को श्वेताम्बर संप्रदाय भी स्वीकार करता है ।
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