________________
.
( १९. )
श्री कुमुदचन्द्राचार्य और देवमूरिका
शास्त्रार्थ. अब हम प्रसङ्गवश श्री कुमुदचन्द्राचार्य और देवसूरि के शास्त्रार्थपर प्रकाश डालते हैं।
श्वेताम्बरीय ग्रंथों में यह बात लिखी हुई है कि श्री कुमुदचन्द्राचार्य दिगम्बर सम्प्रदायके एक बहुत भारी प्रतिभाशाली विद्वान् थे उन्होंने भिन्न भिन्न ८४ प्रसिद्ध स्थानोंपर उद्भट अजैन विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ करके उनको हराया था और जैनधर्मका यश फैलाया था। उन ही दिग्विजयी कुमुचन्द्राचार्यने अणहिल्लपुरके शासक जयसिंह राजकी राजसमाके श्वेताम्बरीय आचार्य देवसूरिके साथ शास्त्रार्थ किया था जिसमें कि कुमुदचन्द्राचार्य हारे थे और देवसूरि जीत गये थे । अत एव कुमुदचन्द्राचार्यको अपमानित करके नगरके अपद्वारसे बाहर निकाल दिया गया था।
इस समय तक जितने भी दिगम्वरीय ग्रंथ उपलब्ध हैं उनमेंसे किसी भी ग्रंथमें इस शास्त्रार्थक विषयमें कुछ भी उल्लेख नहीं है। इस कारण इस शास्त्रार्थ के विषयमें दिगम्बरीय शास्त्रों के आधारपर कुछ नहीं लिखा जा सकता।
दिगम्बरीय ग्रंथोंके शिवाय इतर कोई अजैन निष्पक्ष ऐतिहासिक ग्रंथ भी श्री कुमुदचन्द्राचार्य के शास्त्रार्थमें हार जानेको प्रमाणित नहीं करता है। इस कारण किसी निष्पक्ष पुष्टं प्रमाणसे भी श्री कुमुदचन्द्राचार्यका पराजय सिद्ध नहीं होता है । ___ अतएव इस बातपर विचार दो प्रकारसे ही हो सकता है एक तो श्वेताम्बरीय शास्त्रोंके आधारपर, कि उनमें जो श्री कुमुदचन्द्राचार्य के हार जानेका विवरण लिखा है वह बनावटी असत्य एवं केवल हुल्लडबाजी ही है या कि सचमुच ठीक है ! दुसरे-युक्ति कसौटी पर इस बातकी परीक्षा की जा सकती है कि वास्तव में श्रीकुमुदचन्द्राचार्य उस शास्त्रार्थमें हार सकते थे अथवा हारे थे या नहीं । इन दो मार्गोसे विचार करनेपर शास्त्रार्थमें देवसरि श्वेताम्बरीय भाचार्यसे
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com