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परीक्षामुलके इस द्वितीय परिच्छेदके अंतिम सूत्र " सावरणत्वे करणजन्यत्वे च प्रतिबन्धसंभवात् " की टीका रूपमें प्रमेयकमलमार्तण्ड ग्रंथमें श्री प्रभाचन्द्राचार्यने केवलिकवलाहारका तथा स्त्रीमुक्तिका युक्तिपूर्वक निराकरण किया है। बादिदेवसूरिने उस निराकरणको धो डालनेके इरादेसे अपने प्रमाणनयतत्वालोकालंकारके द्वितीय परिच्छेदका अन्तिम सूत्र बनाया है " न च कवलाहारवत्वेन तस्यासर्वज्ञत्वं कवलाहारसर्वज्ञत्वयोरविरोघात् " । यहांपर त्रुटि फिर भी यह रह गई कि स्त्रीमुक्तिके मंडनमें वादिदेव सूरिने कुछ नहीं लिखा । अथवा लिख न सके।
इस प्रकार दोनों ग्रंथोंके द्वितीय परिच्छेदको अवलोकन करनेसे भी यह निश्चित होता है कि प्रमाणनयतत्वालो कालंकारका ढाचा परीक्षामुखके विषय तथा अर्थ एवं शैलीको लेकर ही तयार किया गया है ।
अब दोनों ग्रंथोंके तीसरे परिच्छेदको भी देखिये इस परिच्छेद में परोक्ष प्रमाणका स्वरूप बतलाया गया है। - परीक्षामुखका पाचवां सूत्र " दर्शनस्मरणकारणक सङ्कलनं प्रत्यभिज्ञानं । तदेवेदं तत्सदृशं तद्विलक्षणं तत्पतियोगीत्यादि । " है। प्रमाणनयतत्वालंकारका तीसरा सूत्र इसीकी समानतापर " अनुभवम्मृतिहेतुकं तिर्यगूर्द्धतासामान्यादिगोचरं सङ्कलनात्मकं ज्ञानं प्रत्यभिज्ञानं " बनाया गया है।
तर्क प्रमाणका लक्षण परीक्षामुखक ११ वें सूत्रमें " उपलम्भानुपलम्भनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः " यों किया है। उसी तर्क प्रमाणका लक्षण प्रमाणनयतत्वालंकार के ५ वें सूत्रमें “ उपलम्भानुपलम्भसम्भव त्रिकालीकलितसाध्यसाधनसम्बन्धाद्यालम्बन मिदमस्मिन् सत्येव भवतीत्याद्याकार संवेदनमहापरनामा तक: " ऐसा किया है । इन दोनों सूत्रोंके मथं, तात्पर्य, लक्षणमें कुछ भी अन्तर नहीं है । शब्द भी समान हैं। ___ साध्यका लक्षण परीक्षा मुखने २० वें सूत्रमें “ इष्टमबाधितमसिद्ध साध्यम् " किया है । यही लक्षण वादिदेवसरिने १२ वें सूत्रमें "अप्रतीतमनिराकृतमभीप्सितं साध्यम " इस तरह लिख दिया है
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