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अधिकांश
सूत्रग्रंथ थे । किन्तु
श्वेतांबरीय ग्रंथों में से वैसे तो श्री देवर्द्धिगण सूरिने छटी शताब्दी में बनाये कमथों से शिवशर्मसूरि विरचित ' कर्मप्रकृति ' नामक ग्रंथ ( ४७६ गाथाओं में । पांचवी शताब्दी में बना था । उससे पहले कोई भी वे ग्रंथकारों ने कर्मग्रंथ नहीं बनाया था । अत एव श्वेतां
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ate कर्मग्रंथ दिगम्बरीय कर्मग्रन्थोंसे बादके हैं । " तदनुसार कर्मग्रंथों की रचनाका आश्रय श्वेतांबरीय ग्रंथकारोंने दिगंबरीय ग्रंथोंपर से लिया होगा न कि दिगम्बरीय ग्रंथकारोंने श्वेतांबरीय ग्रंथोंपर से " यह एक साधारण बात है जिसको प्रत्येक पुरुष मान सकता है ।
अनेक श्वेताम्बरीय सज्जम यह कह दिया करते हैं कि दिगम्बरीय ग्रंथ श्वेताम्वरीय ग्रंथोंके आधार से बनाये गये हैं इस कारण दिगम्बरीय ग्रंथों का महत्व नहीं बनता । उन सज्जनोंको अपने तथा दिगम्बरीय कर्मग्रंथोंपर दृष्टिपात करना चाहिये। आधार प्राचीन पदार्थका ही लिया जाता है न कि पीछे बने हुए का। इस कारण जब दिगम्बरीय कर्मग्रंथ श्वेतांबरीय कर्मग्रंथोंसे पहले बन चुके थे तब आप लोगोंके आक्षेपको रंचमात्र भी स्थान नहीं रहता । हो, दिगम्बर सम्प्रदाय यह कहना चाहे कि श्वेताम्बरीय कर्मग्रंथ दिगम्बरीय कर्म ग्रंथोंके आधारसे बनाये गये हैं तो वह कह सकता है क्योंकि उसको कहनेका स्थान है । इतिहास ता रहा है कि वेताम्बरीय ग्रंथ दिगम्बरी ग्रंथोंसे ३००-४०० वर्ष पीछे बने हैं ।
आत्मानंद जैन पुस्तक प्रचारक मंडल आगरासे प्रकाशित "पहला कर्मग्रथ" नामक श्वेताम्बरीय पुस्तकके १९९ वें पृष्ठ पर मानचित्र खींचकर श्वेताम्बरीय कर्मग्रंथोंका विवरण दिया है। वहां पर 'कर्मप्रकृति' नामक ग्रंथको पहला श्वेताम्बरीय कर्मग्रंथ लिखकर उसका रचना समय पांचवीं विक्रम शताब्दी लिखी है । श्री भूतबलि आचार्य ( दिगम्बर ऋषि ) ' षट्खंड आगम नामक दिगम्बरीय कर्मग्रंथके बनाने वाले हैं जो कि श्री कुंदकुन्दाचार्य से भी पहले हुए हैं । श्री कुन्दकुन्दाचार्य विक्रमकी प्रथम शताब्दी में ( अनुमान ४९ में ) हुए हैं यह अनेक
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