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इस परीक्षामुख ग्रंथ की श्रीप्रभाचन्द्र आचार्यने बहुत भारी टीका रचकर प्रमेयकमलमार्तण्ड नामक उच्चको टका न्यायग्रंथ बनाया है जिसकी बाबरीका न्यायग्रंथ अन्य कोई नहीं पाया जाता । इन्हीं प्रभा चन्द्र अच यने प्रमेय म तडकी समानता रखने वाला न्यायकुमुदचन्द्रोदय ग्रंा भी नया है तथा राजमार्तण्ड, प्रमाणदीपक, वादिकौशिकमार्तण्ड, अर्थप्रकाश आदि अनेक न्यायविषयके ग्रंथ भी प्रभाचन्द्राचार्यने बना ये हैं जो कि उनको न्यायविषयक विद्वत्ताकी साक्षी दे रहे हैं।
श्री प्रभाचन्द्र आचार्य विक्रम संवत् १०६० से १११५ तक के समयमें हुए हैं । इस समय तक भी कोई श्वेताम्बरीय न्यायग्रंथ नहीं बन पाया था। इस कारण न्यायशास्त्रों के विषयमें भी श्वेताम्बर सम्प्रदाय दिगम्बर मम्प्रदायपर यह आक्षेप नहीं कर सकता कि दिगम्बरीय न्याय ग्रंथ श्वेताम्वरीय न्यायग्रंथोंके आधार पर बने हैं। किन्तु दिगम्बर सम्प्रदायको इसके विपरीत कहनेका अवसर है कि श्वेताम्बरीय न्यायग्रंथ दिगम्बरीय न्यायग्रंथोंसे पीछे बने हैं। इस कारण हो सकता है कि श्वेताम्बरीय विद्वानों ने न्यायग्रंथों के निर्माण में दिगम्बरीय न्याय ग्रंथोंका आधार लिया है। यह बात केवल सभावना खपमें ही नहीं है किन्तु सत्य भी है। इस पर हम प्रकाश डालते हैं।
वेताम्बरीय ग्रंथकारों में न्यायशास्त्रके प्रख्यात रचयिता श्री वादिदेवसूरि हुए हैं। ये वादिदेवसरि विक्रम सं. ११७४ में सूरिपद पर आरूढ हुए थे। श्वेतांबरीय ग्रंथों में उल्लेख है कि बड़े बड़े ८४ शास्त्रार्थोंमें प्रबल विजय प्राप्त करनेवाले दिग्विजयी श्री कुमुदचन्द्राचार्य को वादिदेवमूरिने शास्त्रार्थमें पराजित कर दिया था । इसी कारण इन वादिदेवसरि की विद्वत्ताका श्वेतांबरीय ग्रंथों में बहुत गुणगान किया गया है। श्री कुतुदचन्द्राचार्य श्री वादिदेवसू रिके साथ शास्त्रार्थमें हारे या जीते थे इसका उत्तर हम पीछे देंगे किंतु उसके पहले हम दिग्विजयी श्री कुमुदचन्द्राचार्यको जीतनेवाले वादिदवसूरि की विद्वत्ताका परिचय कराते हैं।
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