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( १६० ) क्य साधु मधु तथा मद्य सेवन करे ? अब यह विषय सामने आता है कि क्या जैन साधु मधु, (शहद) और मद्य ( शराब ) खा पी सकते हैं ? इस विषयमें दिगम्बरीय जैन शास्त्र तो स्पष्ट तौरसे गृहस्थ तथा मुनिको मधु और मद्यके खान पानका निषेध करते हैं । इन दोनों पदार्थीको मांस के समान अभक्ष्य बतलाया है । जघन्य श्रावकके आठ मूलगुणों में मद्य, मांस, मधु इन तीनों अभक्ष्य पदार्थोंका त्याग बतलाया है । जो अभक्ष्य श्रावक के लिये त्याज्य है वह दिगम्बर जैन मुनिके लिये भी त्याज्य है । प्राणरक्षण के लिये भी वह इन अभक्ष्योंका भक्षण नहीं करेगा क्योंकि बिनश्वर प्राणोंसे बढकर धर्मसाधन बतलाया है। ... किंतु यह बात श्वेतांबरीय जैन ग्रंथों में नहीं पाई जाती है। वहांपर इस विषयमें भारी गडबड है। इधर तो गृहस्थी श्रावकके लिये २२ अभक्ष्य वस्तु बतला मद्य मांस, मधुको उनमेंसे महाविगय कहते हुए सर्वथा त्याग देनेका उपदेश लिखा है किंतु उधर महानतधारी साधुओंके लिये उनकी छूट कर दी है। ... हमने मधु और मद्य भक्षणके कुछ श्वेतांबरी शास्त्रों के प्रमाण " क्या साधु मांस भक्षण करते हैं।" नामक प्रकरणमें दिखलाये हैं । जैसे कि आचारांगसुत्रके ( इस ग्रंथमें सब पच्चीस अध्याय
और एक हजार ब्यानवें १०९२ सूत्र हैं. पृष्ठ ४०३ हैं ) दशवें अध्यायके चौथे उद्देशवाले ५६५ वें सूत्रमें १७५ पृष्ठपर मधु, मद्य, मांसका लेना साधुको लिखा है।
२. कल्पसूत्रके नवमे अध्यायके १११ वें पृष्ठपर मधुसेवन चौमासे के दिनोंमें निषेध किया है । इसका सारांश यह ही होता है कि अपवाद दशामें साधु चौमासेके सिवाय अन्य दिनोंमें मधु यानी शहद खा सकता है। - इसके सिवाय आचारांग सुत्रके दशवें अध्याय के ८ वें उद्देशमें १९५ वें पृष्ठपर यह लिखा है कि
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