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योग्य हड्डियां बहुत हों और खाने योग्य मांस थोडाही हो तथा ऐसी मछली भी नहीं ले जिसके शरीरपर फेंक देने योग्य कांटे तो बहुत हों और मांस थोडा हो । सारांश यह कि जिस मांस वा मछली में खाने योग्य चीज बहुत हों उसको साधु खानेके लिये ले लेवे और जिसमें खानेके लिये चीज थोडी ही निकले उसको न लेवे ।
आगेका सूत्र भी देखिये
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" से भिक्खू मा जाव समाणे सिया णं परो बहुभट्ठिएण मंसेण, मच्छेण उवणिमंतेज्जा " आउसंतो समणा, अभिकंखसि बहुअट्ठियं मंसं पडिगाहत्तए ? " एयप्पगार णिग्घोस सोच्चा णिसम्म से पुव्वामेव आलोएज्जा, “ आउसोति वा बहिणित्ति वा को खलु . मे कप्पइ से बहुअट्ठयं मंसं पडिगाहेत्तए । अभिकखसि मे दाउं, जावइयं तावइयं पोगले दलयाहि मा अट्टियाई " से सेवं वदतस्स परो ओमहदु अंतो पडिग्गहसि बहुअट्ठियं मंसं परिभाएत्ता णिहट्टु दलएज्जा; तहगारं पडिगाहगं परिहत्थे सि वा परमायंसि वा अफासुयं अणेस णिज्जं लाभे संते जाव णो पडिगा हेज्जा | से आहच्च पडिगाहिए सिया, तं णो " ही " त्ति वएज्जा णो' अणहि ' चि वइज्जा | से त मायाए एगंत-मवकमेज्जा, अहे आरामं सिवा हे उवस्सयसि वा अप्पंडए जाव अप्पसंताणए मंसगं मच्छगं भोच्चा अट्टियाई कंटए गहायसे त मायाए एंगतमवक्क - मेज्जा । अहे ज्झामथंडिलंसि वा जाव पमज्जिय परिदुवेज्जा ||६३०||
अर्थात् - कदाचित मुनिको कोई मनुष्य निमंत्रण करके कहें कि हे आयुष्मन् मुने ! तुम बहुत हड्डियों वाला मांस चाहते हो ? तो मुनि यह वाक्य सुनकर उसको उत्तर दे कि " हे आयुष्मन् ! या हे बहिन ! मुझे बहुत हड्डियोंवाला मांस नहीं चाहिये यदि तुम वह मांस देना चाहते हो तो जो भीतरका खाने योग्य चीज है वह दे दो हड्डियां मत दो। ऐसा कहते हुए भी गृहस्थ यदि बहुत हड्डियोंवाला मांस देनेके लिये ले आवे तो मुनि उसको उसके हाथ या वर्तनमें ही रहने दे । लेवे नहीं ।
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