________________
( १३० )
आत्मानंद जीके, इस लेख से स्पष्ट प्रमाणित होता है कि निशीथ चूर्णिमें श्वेताम्बर जैन साधु द्वारा लाठी से एक दो नहीं किन्तु तीन सिंहों को जान से मारे जानकी कथा अवश्य लिखी है । उस महा हिंसा के दोषको छिपाने के प्रयत्न से आत्मानन्दजीने अयुक्तिपूर्ण समावान किया है ।
प्रत्येक मनुष्य समझ सकता है कि हाथि सरीखे महाबली दीर्घकाय पशुको भी विदारण कर देनेवाला वनराजा सिंहका लाठीद्वारा हटाये जाने मात्रसे मरना असंभव है जब तक कि उसके ऊपर पूर्ण बलसे लाठीका प्रहरन हुआ हो । लाठी द्वारा हटाने मात्र से कुत्ता बिल्ली आदि साधारण पशु भी नहीं मर सकते; सिंहकी बात तो अलग रही ।
दूसरे - साधुकी लाठीसे तीन सिंह क्रमशः मरे होंगे; एक साथ तो मरे ही न होंगे। जब ऐसा था तो एक सिंहके मरजाने पर ही कमसे कम साधुको महान पंचेंद्रिय पशुकी हिंसा अपने हाथसे हुई जानकर शेष दो सिंहों का पंछा छोड देना था । उसने ऐसा नहीं किया इससे क्या समझना चाहिये ? इस बातका विचारशील पाठक स्वयं विचार करें ।
तीसरे - महाव्रती साधुओंको किसी जंवर लाठी प्रहार करनेका आदेश भी कहां है ? माधुको तो अपने ऊपर अाक्रमण करने वाले के समक्ष भी शान्तिभाव प्रगट करने का आदेश है। लाठी से किसी जीव तुको पीडित करना अथवा उसपर प्राणान्त करनेवाला असह्य प्रहार कर बैठना साधु के सरासर विपरीत है ।
इस कारण या तो श्वेताम्बरीय शास्त्रोंको निर्दोष ठहरानेके लिये उस साधुको दोषी ठहराना आवश्यक है अथवा उस साधुको निर्दोष निश्चित करते हुए श्वेताम्बरीय शास्त्रोंके भेट वह दोष रखदेना चाहिये कि वे साधुके ऐसे कार्यको भी अनुचित नहीं समझते ।
किन्तु कुछ भी हो यह बात तो प्रत्येक दशा में स्वीकार करनी पडेगी कि लाठो महाव्रती साधुके लिये महादोषजनक शस्त्र है जिसके
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com