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यानी-अथवा पांच तरहका चमडा साधुके लिये दूसरे प्रकार मतलबसहित बतलाते हैं । १-साधु अपने पैरों में पहननेके लिए एक तलीका चमडेका जूता या वैसा न मिलनेपर दो तली वाला ( चमडेकी दो पट्टीसे जिसका तला बना हो ) जूता रक्खे । यह जुता रात के समय ऊजडमें ( शहर गांवके बाहर-मैदानमें ) चोर, या जंगली जानवरोंके भयसे जल्दी जल्दी जाते हुए कांटे आदिसे वचनेके लिये पैरोंमें पहने । अथवा कोई साधु कोमल पैरोंवाला हो-नंगे पैर न चल फिर सकता हो तो उसके लिये भी यह काम भाता है । २खलग-वायु आदिसे पैर फट गये हों ( बिवाई हो गई हो) जिससे कि चलते समय तिनके चुभते हों या बहुत सुकुमार मनुष्य शर्दीके दिनोंमें नंगे पैर न फिर सकता हो तो वह पैरोंमें पहनने के लिये अपने पास रक्खे । ३- बाधरी- यह बाधरी नामक चमडा फटे हुए जूते आदिको जोडनेके लिये काममें आता है।
४- कोसग-यह चमडेकी एक चीज होती है जो कि किसी साधुके नाखून टूट जानेपर या पैर फट नानेपर अंगूठे, उंगलीपर बांधनेके लिये, नाखून आदि राखने के लिये दबानेके लिये काम भाती है।
५ किसी रास्तेमें जंगलमें लगी हुई आगके भयसे बचनेके लिये जो चमडा ओढा जाय, या पृथ्वी कायिक आदि बहुत सचित स्थान होय वहां यत्नाचारके लिये उस चमडको विछाकर साधु बैठे, या यदि चोर आदिने साधुके कपडे चुरा लिये हों, लूट लिये हों तो वह चमड। पहननेके भी काम आवे । इस प्रकार यह पांच प्रकारका चमडा महावतधारी साधुओंको योग्य बतलाया है।
इस प्रकार चमडेका उपयोग करनेके लिये साधुको जब खुली आज्ञा है तो श्वेताम्बरी भाई अजैन साधुओंके पास मृगछाला आदि चमडा देखकर उसपर आक्षेप नहीं कर सकते। दूसरे वे अपने साधुओंको महाव्रतधारी किसी तरह नहीं कह सकते क्योंकि जीवोंकी योनिस्थान भृत ( क्योंकि पानीसे भीगे हुए चमडे में सम्मुर्द्धन जीव पैदा हो जाते हैं)
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