________________
( १३८ ।
किया है उन्हें अपने साथ बिछौना और उस बिछौनेके लिये चादर अपने साथ रखनकी क्या आवश्यकता है ? इधर परिग्रहत्याग महाव्रत धारण करना और उधर बिछौना चादर भादि परिग्रह रखना परस्पर विरोधी बात है। . साधु यदि पीछी ( रजोहरण या ओघा ) से जीवजंतु रहित भु. मिको फिर भी शोधकर तथा उसी पीछी ( ओधा ) से अपना शरीर झाड कर पृथ्वीपर सोवें तो उनके संयमकी क्या हानि है ? यदि विस्तर और चादर बिना नहीं सोया जाता है तो फिर पलंग रखने में भी क्या हानि हैं ? ____ सोनेसे पृथ्वी कायिक जीव पिचला जाता है यह कहना ठीक नहीं क्योंकि पृथ्वीकायिक जीव चलने फिरने उठने बैठने वाले ऊपरके पृथ्वी पटलमें नहीं होता है, नीचेके पटलमें होता है। और यदि ऊपरकी पृथ्वीमें भी हो तो क्या बिछौना बिछानेसे वह बच जायगा क्योंकि साधु के शरीरका बजन ( बोझ ) तो फिर भी जमीनपर ही रहेगा । तथा चलते फिरते और उठते बैठते समय उस पृथ्वीकायिक जीवके न कुचलनेका क्या प्रबन्ध सोचा है ?
बिछौना चादर साथ रखने से जो दोष आते हैं उनको संक्षेपसे लिखते हैं। विछौना का अर्थ श्वेताम्बर भाई संथारा या संस्तारक समझें। चादरका अर्थ उत्तरपद ।
१-विछौना और चादर ध्यान, संयम आदिका कारण नहीं, शरी. रका सुखसाधन है । इससे ये दोनों वस्तु परिग्रहरूप हैं । इनको अपने साथ रखनेसे साधुके परिग्रहत्याग महाव्रत नष्ट होता है।
२-बिछौना चादर गृहस्थसे लेनेमें साधु को याचना करनी पड़ती है।
३-विछौना चादर इच्छानुसार मिल जानेपर साधुको हर्ष तथा इच्छा प्रतिकूल मिलने पर शोक होगा।
४ --विछौना चादरमें जूं खटमल आदि जीव पैदा हो जाया करते हैं तथा मक्खी, मच्छर, कुंथु आदि जीव उनमें आकर रह जाते हैं जिससे कि उस विछौने पर सोनेसे उन जीवोंका पात होगा ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com