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इस नान्य अपरनाम अचेल परीषडका उल्लेख निम्नलिखित श्वे सम्भरीय ग्रंथों में विद्यमान हैं। देखिये प्रथम तत्वार्थाधिगमसूत्र के नौवे अध्यायके ९ वे सूत्रको -
क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाउन्या तिस्त्री चर्या निषेधाशय्याक्रोशवधयाचनाला भरोगतृणस्पर्श मलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाज्ञानादर्शनानि । नान्य, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, मलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कारपुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और प्रदर्शन ये २२ परीषद हैं ।
इनमें नाग्न्य यानी नम रहनकी परीषदका नाम स्पष्ट आया है । बीर सं० २४५१ में आगरा से प्रकाशित नवतत्व ' नाम श्वेतांबरीय ग्रंथकी २१ बीं २२ वीं गाथा इस प्रकार है
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खुहा पिवासासी उन्हं दंसाचेलारइत्थिओ |
चरिआ निसिहिया सिज्जा, अक्कोस वह जायणा । २१ । अलाभ रोग तणफासा, मलसकार परी सहा ।
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पद्मा अन्नाण सम्मत्तं, इअ वावीस परीसहा ॥ २२ ॥
अर्थात् — क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंश, अचेल, भरति, चर्या, निषधा, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और सम्यक्त्व ये २२ परीषहें हैं ।
यहाँ पर भी अचेल यानी वस्त्र छोडकर नंगे रहनेकी परीषहका स्पष्ट उल्लेख है ।
प्रकरण रत्नाकर तृतीय भाग अपरनाम प्रवचनसारोद्धारके २६५ पृष्ठपर लिखा है
खुहापिवासासी उन्हं, दंसाचेला रइच्छिओ ।
चरिया निसीहिआ सेज्जा, अकोस वह जायणा । ६९२ । अर्थात् — क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंश, अचेल, अरति, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना इनके अतिरिक्त शेष ९ परीषद भी इस ग्रंथ के गुजराती टीकाकारने बिना मूल गाथा लिखे टीकामें लिखदी हैं ।
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