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यानी - साधु ५ तरहका दंडा रक्खे | १ - लाठी- जो कि अपने शरीर के बराबर ३ || साढे तीन हाथ लंबी हो । २ - विलट्ठी-जो कि अपने शरीर से चार अंगुल छोटी हो । ३-दंड-नो कि अपनी भुना ( बांह ) के बराबर हो । ४ - विदंड जो अपने कांख ( कंधों ) के बराबर ऊंचा हो । ५ - नाली - जो लाठी से भी चार अंगुल ऊंची हो । यह नाली नदी पार करते समय पानी नापनेके लिये साधुके काम बाती है ।
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ast आयमाणा विलठ्ठि चतुरंगुलेण परिहीणे । दंडो बाहुपमाणो विदंडओ कक्खमेताओ ।। ६७७ ।। लठ्ठीए चउरंगुल समुसीया दंडपंचगे नाली ।
लाठी रखने में साधुको श्वेताम्बरीय ग्रंथों और उनके रचयिता आचायौने अनेक लाभ बतलाये हैं जैसे कि - लाठीके सहारे साधु कीचड में फिसलने से बचजाता है । लाठीके सहारे चलनेसे उपवास करने बाले साधुको खेद नहीं होता, लाठी देखकर कुत्ता, बिल्ली, चोर, डाक्कू डर कर पास नहीं आने पाते, लाठी के सहारे खड्डे भादिमें गिरनेसे साधु बच जाता है, लाठी से सामने आये हुए सांप अनगरको साधु हटा सकते हैं । लाठी से पानी नापकर मुनि नदी पार कर सकते हैं इत्यादि ।
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अभी ( कार्तिक सु. ११ वीर सं. २४५३ ) कोटा से प्रकाशित आगमानुसार मुहपत्तिका निर्णय और जाहिर घोषणा " नामक पुस्तक के ८३-८४-८५ वें पृष्ठपर ऐसे ही १५ तरहके गुण लाठी रखने से मुनि को बतलाये हैं। इस पुस्तकको वे० मुनि मणिसागरजीने लिखा है । १५ वा गुण लाठी (दंडा ) रखनेका साधुको यह बतलाया है
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" दर्शन ज्ञान चारित्रकी आराधना करनेसे मोक्ष प्राप्तिका कारण शरीर है और शरीरकी रक्षा करनेवाला दंडा है । इस लिये कारण कार्य भावसे दर्शन ज्ञान चारित्र तथा मोक्षका हेतु भी दंडा है । "
श्वेतांबर ग्रंथों के उपयुक्त वाक्योंसे यह सिद्ध होता है कि aroth कारण साधु शरीरको आराम मिलता है । इसी कारण सर्व
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