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सिद्धिका कारण लाठी बतला दी है । अब यहां विचार करना है कि धास्तवमें लाठी ( लकडी ) साधुके चारित्र (संयम ) की उपकारिणी है या अपकारिणी है ? ___साधु ( मुनि ) अहिंसा महाव्रतके धारक होते हैं। उनको अपनी चर्या ऐसी वनानी चाहिये जिसके कारण उनका अहिंसा महाव्रत मलिन न होने पावे । किन्तु साधु यदि अपने पास लाठी रक्खे तो उसके अहिंसामहाब में मलिनता अवश्य आवेगी। क्योंकि लाठी एक हथियार है जिससे कि दूसरे जीवोंको मार दी जाती है । ऐसा घातक हथियार अपने पास रखनेसे साधुओंके मनमें बिना किसी निमित्त भी हिंसा करनेके भाव उत्पन्न हो सकते हैं। ___गृहस्थ लोग तो विरोधि हिंसाके त्यागी नहीं होते हैं । इस कारण वें अपने शत्रुसे, चोर डाकू या हिंसक पशुसे अपने आपको बचाने के लिये उसके साथ लडनेके निमित्त लाठी, तलवार, बंदुक आदि हथियार अपने पास रखते हैं और उनसे मौकेपर काम भी लेते हैं। परन्तु साधु तो विरोधी हिंसाके भी त्यागी होते हैं। वे तो अपने ऊपर आक्रमण (हमला) करनेवाले दुष्ट मनुष्य, चोर, डाकू या हिंसक पशुके साथ लडने को नहीं तयार होते हैं। फिर वे ऐसे घातक हथियार लाठी को अपने पास क्यों रवखें ..
दूसरे - साधु परम दयालु होते हैं। उनके बराबर दया किसी और मनुष्यके हृदयमें होती नहीं है। इसी लिये वे मन वचन कायसे दूसरे जीवोंको अभय ( निडरता ) देते हैं। इस बातको श्वेताम्बर ग्रंथ भी स्वीकार करते हैं । परन्तु लाठी रखने पर साधुके यह बात बनती है नहीं । क्यों कि लाठको देखकर मनुष्य नहीं तो बेचारे पशु तो अवश्य भयभीत हा जाते हैं क्यों के लाठी पशुओं के मारनेका एक सुलभ हथियार है । इस कारण लाठीधारी साधु यदि वचनसे नहीं तो लाठी के कारण मन और कायसे अवश्य दूसरे जीवों के हृदयमें भय (डर) उपजाते हैं । इस कारण उनके संयम धर्म तथा अहिंसा महाव्रत में कभी आती है।
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