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गु० टी० - बीजी प्रतिज्ञा-मुनि अथवा आर्याए पोताने खप लागंतुं वस्त्र गृहस्थना घरे जोईने ते मागवुं । ते आ रीते के शरू भातमां गृहस्थनां घरमा रहेता माणसो तरफ जोईने कहेवुं के आयुष्मन् ! अथवा बेहेन ! मने आ तमास वस्त्रोमांथी एकाद वस्त्र आपशो ? आवी रीते माग्रतां अथवा गृहस्थे पोतानी मेले तेवुं वस्त्र आपतां निर्दोष जाणीने ते बस्त्र ग्रहण कर । ए बीजी प्रतिज्ञा । ५१२ ।
भावार्थ-मुनि अथवा आर्यिका को अपने लिये जिस कपडेकी आवश्यकता हो उस कपडेको गृहस्थ के घर देखकर घरवाले मनुष्यों से इस प्रकार मांगे कि हे आयुष्मन् ! ( बडी आयुवाले पुरुष ) या हे बहिन ! मुझको अपने इन कपडों में से दो एक कपडे दे दोगी ? इस तरह मांगने पर या वह गृहस्थ स्वयं कपडा देने लगे तो उस कपडेको निर्दोष जानकर वह साधु या साध्वी ले लेवे । कपडा लेने वाली साधुकी यह दूसरी प्रतिज्ञा है ।
तीसरी प्रतिज्ञा यों है ----
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अहावरा तच्चा पडिमा -- से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से ज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा, तंजहा, अंतारेज्जगं वा उत्तरिज्जगं वा तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा जाव पडिग्गाहेज्जा । तच्चा पडिमा १८१३ । "
गु० टी० - त्रीजी प्रतिज्ञा - मुनि अथवा आर्याए जे वस्त्र गृहस्थे अंदर पहेरीने वापरेले या उपर पहरीने वापरेलं होय तेवी वस्त्र पोते मागी लेवं, या गृहस्थे आपवा मांडतां निर्दोष जणातां ग्रहण करवुं । ए त्रीजी प्रतिज्ञा । ९१३ ।
भावार्थ — मुनि या आर्यिका गृहस्थके अन्य कपडोंके भीतर पहनकर या और कपड़ोंके ऊपर पहनकर काममें लाये हुए वस्त्रको स्वयं उस गृहस्थसे मांग लेवे या वह गृहस्थ ही स्वयं देवे तो उसको निर्दोष जान ले लेवे | यह तीसरी प्रतिज्ञा है ।
चौथी प्रतिज्ञा इस प्रकार से है.
"अहावरा चउत्था पडिमा - से मिक्खु वा मिक्खुणीवा उज्झियधम्मियं वत्थं जाएज्जा । जं चण्णे बहवे समण माहण अतिहि किवण वणीमगा
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