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करें तो उन्हें मालूम होगा कि आपके ग्रंथोंमें बतलाये गये उत्कृष्ट जिनकल्पी साधु दिगम्बर जैन मुनियों के समान बिलकुल नग्न होते हैं उनका भी तो श्वेतांबरीय स्त्री पुरुष दर्शन करते होंगे। तो क्या उनके दर्शनसे भी उनके कामविकार उत्पन्न होता होगा?
तथा-आपके ग्रंथोंके लिखे अनुसार दीक्षा लेने के १३ मास पीछे भगवान महावीर स्वामी भी बिलकुल नम हो गये थे। आचारांग सूत्रके ४६५ वें सूत्रमें भी ऐसा ही लिखा है। फिर अल्पज्ञ साधु दशामें उन महावीर स्वामीके भी तो लिंगादि अंग दर्शन करनेवाली भोजन करानेवाली स्त्रियोंको दीख पड़ते थे। फिर उनके मनमें भी काम विकार क्यों नहीं उत्पन्न होता था ? ( मुनि आत्मारामजीका कस्सित अतिशय भी केवलज्ञानीके प्रगट होता है )
इस कारण इस झुटे भ्रमको छोडकर श्वेताम्बरी भाइयोंको यह निश्चय रखना चाहिये तथा प्रत्यक्ष रूपसे अब भी दिगम्बर जैन मुनियों का, मुहबिद्री, कार्कल आदि दक्षिण कर्णाटक देशमें विराजमान बाहुवलीके विशाल प्रतिबिम्बोंका एवं बावनगजाजी आदि खङ्गासनवाली विशालकाय नम मूर्तियों का दर्शन करके समझ लेना चाहिये कि वीतराग मूर्ति के दर्शनसे कामविकार उत्पन्न नहीं होता।
तदनुसार श्वेताम्बरी भाइयोंको चाहिये कि वे अपनी अर्हन्त प्रतिमाओंको असली अर्हन्त रूपमें नम निर्माण कराया करें, लंगोटीका चिन्ह लगवाकर उनकी वीतरागताको दृषित न किया करें।
गुरुगरिमा समीक्षण जैनमुनिका स्वरूप कैसा है ? अब यहां पर जैनसाधुके स्वरूपका समीक्षण करते हैं क्योंकि श्री अहन्त भगवान के समान जैनसाधुके वेष तथा चर्याके विषयमें भी दिगम्बर, श्वेताम्बर समाजका मतभेद है । गुरु गृहस्थ पुरुषोंको तरणतारण होता है इस कारण परीक्षा द्वारा जैनगुरुका स्वरूप भी निर्णय कर लेना परम आवश्यक है।
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