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इस विषयमें यह शंका करना वहुत भोलापन है कि .. अईन्त भगवानकी नग्न प्रतिमा बनाने पर उप प्रतिमाके लिंगादि अंगोंको देखने से स्त्री पुरुषोंके मममें कामविकार उत्पन्न हो सकता हैं । " क्योंकि सरागी मूर्तिकी लिंग इन्द्रियको देखकर ही दर्शन करने वालेके मनमें कामविकार उत्पन्न हो सकता है। वीतराग मूर्तिके लिंगादि
गोंके देखनेसे विकारभाव उत्पन्न नहीं होता। इसका प्रत्यक्ष उदा. हरण यह है कि स्त्रियां छोटे छोटे बालकोंको प्रतिदिन नंगे रूपमें देखती रहती हैं उनके लिंगादि अंगोपर भी उनकी दृष्टि जाती हैं तथा उस नंगे बालकको वे शरीर से भी चिपटा लेती हैं। किन्तु ऐसा सब कुछ होनेपर भी उनके मनमें कामविकार उत्पन्न नहीं होता । क्योंकि उस बालकके मनमें कामविकार नहीं है जो कि उसकी लिंग इन्द्रियसे प्रगट हो रहा है।
युवा मनुष्य के उघडे हुए लिंगादि अंग इसी कारण स्त्रियों के मनमें कामविकार उत्पन्न कर देते हैं कि उस मनुष्यके मनमें कामविकार मौजूद हैं जो कि उसकी लिंगेन्द्रियसे प्रगट होरहा है । यदि उसके मनमें कामविकार न होवे जैसा कि उसके अंगोंसे प्रगट हो जायगा तो उस युवक पुरुषको नग्न देखकर भी उनके मनमें कामविकार उत्पन्न नहीं हो सकता है।
सर्ववस्त्ररहित नम दिगम्बर मुनि भगवान ऋषभदेवके जमानेसे लेकर अबतक होते आये हैं। भगवान ऋषभदेव आपके अनुसार भी वस्वरहित नग्न थे। इस समय भी दक्षिण महाराष्ट्र तथा कर्नाटक देशमें विहार करने वाले आचार्य शान्तिसागर जी, मुनि वीरसा गर आदि हैं। तथा राजपूताना, बुंदेलखंड, मालवा, संयुक्तप्रांत, विहार प्रदेशमें विहार करने वाले नग्न दिगम्बर मुनि शांतिसागरजी छाणी, आनंदसागरजी, सूर्यसागरजी चन्द्रसागरजी आदि हैं । उनके दर्शन करनेसे किसी भी स्त्री पुरुषके मनमें विकार भाव नहीं उत्पन्न होते क्योंकि वे स्वयं वीतराग मूर्ति हैं । कामविकारसे रहित हैं।
अन्य बात छोडकर श्वेतांबरी भाई अपनेही ग्रंथोंका अवलोडन
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