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३१ वे पृष्टपर तीर्थंकरों के बावनबोलमें लिखते हैं। तदनुसार जयन्त विमानसे आया हुआ श्रीमल्लिनाथ तीर्थकरका जीव स्त्री हो भी नहीं सकता पुरुष ही हो सकता है ऐसा कर्म सिद्धान्तका नियम है।
प्रकरण रत्नाकर के (चौथा भाग ) संग्रहणी सूत्र नामक प्रकरणके ७६ वें पृष्ठपर यह लिखा है कि,
आणयपमुहा चर्विउं मणुएसु चैव गच्छति ॥ १६५ ॥ यानी - आनत आदि स्वर्गाके देव मरकर मनुब्योंमें उत्पन्न होते हैं।
तदनुसार अनुत्तर विमानोंमें केवल देव ही होते हैं, देवी नहीं होती हैं । इस कारण वहांसे आया हुआ जीव 'स्त्री' किसी प्रकार हो ही नहीं सकता । फिर जयन्त विमानसे आया हुआ श्री मल्लिनाथ तीर्थकरका जीव स्त्री कैसे हो सकता है ? ग्रेवेयकके ऊपर सभी देव होते हैं और वे सभी पुरुष होते हैं, स्त्री कोई भी नहीं होता।
और सम्यादृष्टी जीव मरकर स्त्री होता नहीं ऐसा अटल नियम है। यदि सम्यग्दृष्टी जीवने मनुष्य आयु बांधली हो तो वह पुरुष ही होगा; स्त्री, नपुंसक कदापि न होगा । अनुत्तर विमानवासी सभी देव सम्यग्दृष्टी होते हैं और तीर्थकर प्रकृति वाला जीव तो कहीं भी क्यों न हो, सम्यग्दृष्टी ही होता है । फिर जयन्त विमानसे चयकर आया हुआ श्री मल्लिनाथजी तीर्थकर का सम्यग्दर्शन धारक जीव स्त्री क्यों होवे? इसका उत्तर श्रेताम्बर सम्प्रदायके पास कुछ नहीं है ।
प्रकरण रत्नाकरके ( चौथा भाग) छठे कमग्रंथ की · जोगोवओग लेस्सा' इत्यादि ५५ वीं गाथाकी टीकामें यों लिखा है
(८-९ वीं पंक्ति ) " अविरतिसम्यग्दृष्टि वैक्रियिकमिश्र तथा कार्मण काययोगी ए बेहुने स्त्रीवेदनो उदय न होय जे भणी वैक्रिय काययोगी अविरतसम्यग्दृष्टि जीव स्त्रीवेदमाहे न उपजे । "
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