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गृहस्थमुक्ति परीक्षा __ क्या गृहस्थ मुक्ति पासकता है ? श्वेताम्बर सम्प्रदायके ग्रंथोंमें 'अन्यलिंगसे मुक्ति के समान ही गृहस्थ अवस्थासे भी मुक्तिका प्राप्त होना बतलाया है । प्रकरण रत्नाकर (प्रवचनसारोद्धार ) के तीसरे भागके १२७ वें पृष्ठपर पूर्वोक्त गाथा लिखी है
"इह चउरो गिहिलिंगे" इत्यादि ४८२ . यानी-गृहस्थलिकसे एक समयमें अधिकसे कधिक चार मनुष्य मुक्त होते हैं।
प्रकरण रत्नाकरका जैसा यह लेख है उसी प्रकार श्वेताम्बरीय प्रथमानुयोगके कथाग्रंथों में गृहस्थ अवस्थासे मुक्ति प्राप्त करनकी कथाएं भी विद्यमान हैं। एक बुढिया उपाश्रयों ( साधुओंके ठहरनेके मकानमें ) बुहारी देते देते केवलज्ञान धारिणी होकर मुक्त होगई । एव नट वांसके ऊपर खेलते खेलते केवली होकर मोक्ष चला गया: इत्यादि कथाओंका परिचय तो हमको किसी श्वेताम्बरीय ग्रंथसे नहीं मिलपाया है । हां २१४ अन्य कथाओंका परिचय अवश्य है । एक कथा तो कल्पमूत्र में १.१ पृष्ठपर श्री ऋषभदेव तीर्थकरकी माता मरुदेवीकी है । जो कि इस प्रकार है। ____ मरतचक्रवर्ती मरुदेवी माताको हाथीपर चढाकर भगवान ऋषभदेवके समवसरणमें गये वहां पहुंच कर समवसरण के बाहरसे ही भरतचक्रवर्तीने आठ प्रातिहार्यसहित, समवसरणके बीचमें विराजमान भगवान ऋषमदेव को मरुदेवी माताको दिखलाये । तदनन्तर भातचक्रवर्तीने यो कहा
" तमारा पुत्रनी ऋद्धि जुओ । एव रीते भरतनुं वचन समिली ने हर्षथी रोमांचित अंगवाला श्रएला एव मरुदेवीमातानी बांसुओ पडवा जाग्यां; तथा तेथी तेमनां नेत्रो पण निर्मल थयो । तथा प्रभुनी छत्र, चामर आदिक प्रतिहारोनी शोभा जोइने विचा(वा लाग्यो के अहो ! मोहयी विव्हळ यएला एवा प्राणीओना धिक्कार छ। सघला प्राणीओ
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