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खोद कर दूसरे कृत्रिम काली पुतली संयुक्त सफेद पत्थरकी आंखोंको जड देते हैं। प्रतिमाके शिर पर राजा, महाराजाओं अथवा देव, इन्द्रोंके समान सुंदर मुकुट पहनाते हैं। कानोंमें चमकदार कुंडल पहनाकर सजा देते हैं। हाथोंमें सोनेके कडे, भुजामें बाजूबंद पहनाया करते हैं । गलेमें सुंदर हार रखते हैं और शरीरपर पहनने के लिये अच्छे सुंदर वस्त्रका अंगिया बनाते हैं जिसपर मलमा सतारेका काम किया हुआ होता है।
वैसे श्वेतांबरी भाई प्रतिदिन कमसे कम अपने मंदिरकी मूलनायक प्रतिमाको ऐसे सुंदर वस्त्र आभूषणोंसे अवश्य सजाये हुए रखते हैं किंतु किसी विशेष उत्सवके समय तो वे अवश्यही उस प्रतिमाका भी मनोहर शृंगार करते हैं जिसको कि उत्सवक लिये बाहर निकालते हैं।
___ अनेक स्थानोंपर श्वेताम्बरी भाइयोंने । कुछ दिगम्बरी प्रतिमाओंपर अपना अधिकार कर रक्खा है अतः उन प्रतिमाओंकी वीतराग मुद्राको ढकनेके लिये भी उधोग करते रहते हैं। आगरे में जुम्मा मसजिदके पास जो श्री शीतलनाथजीका मंदिर है उसमें श्री शीतलनाथ तीर्थकरकी २॥ ३ फुट उंची श्यामवर्णकी पाषाण निर्मित दिगम्बरीय प्रतिमा है जो कि बहुत मनोहर है उसपर शृंगार कराने के लिये सदा उद्योग करते रहते हैं। प्रात:काल दिगम्बरी भाइयोंके दर्शन कर जाने के पीछे उसको सुसज्जित कर देते हैं। मक्सी पार्श्व. नाथकी प्रतिमापर भी ऐसा ही किया करते हैं। अभी कुछ दिनसे केशरिया तीर्थक्षेत्रपर भी दिगम्बरी प्रतिमाओंको कृत्रिम भांख भादि जडकर. श्वेताम्बरीय प्रतिमा बनानेके लिये शृंगारयुक्त करना चाहते हैं। इत्यादि ।
इस प्रकार एक तरहसे श्वेताम्बरी भाई आज कल वीतरागताको छोडकर सरागताके उपासक बन गये हैं । यहाँपर हमारा श्वेताम्बरी भाइयों के सामने प्रश्न उपस्थित है कि आप लोग इस समय वीतराग देवकी आराधना, पूजन करते हैं अथवा सरागी देव की ?
यदि आप सरागी देवकी पूजन आराधना करते हैं तो भाप कोग
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