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जैन नहीं कहला सकते क्योंकि जैन समाज वीतराग देव का उपासक है । वह सरागी देवकी उपासना नहीं करता है। ___ यदि आप वीतराग देवके उपासक हैं तो आपको अपनी अर्हन्त प्रतिमाएं वीतराग रूपमें रखनी चाहिये उनको सरागी नहीं बनाना चाहिये । आप अपनी प्रतिमाओं को मनोहर चमकीले वस्त्र आभूषण पहना कर जो शूगारयुक्त कर देते हैं सो आपकी उस अर्हन्त प्रतिमामें तथा कृष्ण, रामचन्द्र आदि की मूर्तियों में कुछ भी अंतर नहीं रहता । बरिक आपकी अर्हन्त मूर्तिसे कहीं अधिक बढकर बुद्धमूर्ति वैराग्यता प्रगट करनेवाली होती है।
इसके सिवाय इसी विषयमें हमारा एक प्रश्न यह है कि आप तीर्थकर की प्रतिमा अर्हन्त दशाकी पूजते हैं अथवा राज्यदशा की ?
कुछ श्वेताम्बरी भाई यह कह दिया करते हैं कि हम राज्यदशाके तीर्थकरकी प्रतिमा बनाकर पूजते हैं । सो ऐसा मानना तथा ऐसा मानकर राज आभूषण संयुक्त प्रतिमाको पूजना बहुत भारी अज्ञानता है क्योंकि तीर्थकर राज्यावस्थामें न तो पूज्य होते हैं और न राज्यावस्थाकी तीर्थकर प्रतिमाको पूजनेसे आत्माका कुछ कल्याण ही हो सकता है । ___ राज्यअवस्थाकी मूर्तियां तो रामचन्द्र, लक्ष्मण, कृष्ण आदि की भी हैं जिनको कि अजैन भाई पूजा करते हैं । आपकी आराधनामें और उनकी आराधनामें अंतर ही क्या रहेगा । तथा जैसा मनुष्य स्वयं बनना चाहता है वह वैसे ही आदर्श देवकी आराधना उपासना करता है । तदनुसार आप जो राज्यावस्थामें तीर्थंकरको पूजते हैं सो आपको क्या राज्य प्राप्त करनेकी इच्छा है ? यदि राज्य प्राप्त करना चाहते हैं तो समझना चाहिये कि आपको संसार अच्छा लगता है। तथा जो श्वेताम्बरी जैन राजा हो उसे तो फिर पूजन आराधना करनेकी आव. श्यकता नहीं क्योंकि उद्देशानुसार उसको यहाँपर राज्यपद प्राप्त है ।
यदि आप अर्हन्तदशाकी प्रतिमाको पूज्य समझते हैं तो फिर यह बतलाहये कि क्या अर्हन्त वस्त्र आभूषण पहने होते हैं ? अथवा वस्त्र आभूषण आदि शंगारसे हीन होते हैं ?
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