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चौथे- गृहस्थ कर्मसिद्धान्त के अनुसार अपनी सर्वोत्कृष्ट तपस्या से भी अच्युत स्वर्ग से ऊपर नहीं जा सकता ।
पांचवें--कर्मोंका क्षय करनेवाला शुक्लध्यान गृहस्थ के होता नहीं है इस कारण गृहस्थको मुक्ति नहीं हो सकती ।
छठे गृहस्थ अवस्था से ही यदि मुक्ति हो जाती तो तीर्थकरदेवने साधुदीक्षा ग्रहण करनेका उपदेश क्यों दिया ?
सातवें - यदि इतर साधारण पुरुष गृहस्थ दशासे मुक्त हो सकते हैं तो फिर तीर्थंकर भी गृहस्थ अवस्था से मुक्त क्यों नहीं होते ? ने तो सम्यग्दर्शन, सम्याज्ञानमें अन्य गृहस्थ पुरुषों से बहुत बढे चढे भी होते हैं ?
पैर दावते दावते केवलज्ञान.
श्वेताम्वरीय कथा ग्रंथोंमें अधिकांश ऐसी कथाएं हैं जिनके कल्पित रूप वहुत शीघ्र स्पष्ट हो जाते हैं। इतना ही नहीं किन्तु उन harrat घटनामें सिद्धान्तके नियमों से भी बहुत भारी बाधा आ उपस्थित होती है । हम इस बातको यहां केवल चंदना तथा मृगावती के केवलज्ञान उत्पन्न होने वाली कथाको दिखलाकर ही समाप्त करेंगे ।
चंदना तथा मृगावतीके केवलज्ञान उत्पन्न होनकी घटना कल्पसूत्र के ११६ वें पृष्ठपर यों लिखी है
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एक दहाडो श्री वीरंप्रभुने वदिवा माटे सूर्य अने चन्द्र पोतानां विमानसहित आव्या । ते वखते दक्ष एवी चंदना अस्त समय जाणीने पोताने स्थानके गई; अने मृगावती सूर्य चन्द्रना नावा बाद अंधकार थये छते, रात्री जाणीने बीती थकी, उपाश्रये आवीने, ईर्यावही पडीकमीने चंदना प्रते कहेवा लागी के, मारो अपराध याप क्षमा करो | त्यारे चंदना पण कंके, तने कुलीनने आवु करवु युक्त नथी; त्यारे तेणोए क के, फरीने हुं तेम करीश नहीं एम कही तेणीने पगे ते पडी । एटला चंदनाने निद्रा आवी गइ | अने मृगावतीने तेम खमावत थका केवलज्ञान उपयु पछी सर्पपासेथी तेणीनो हाथ वसेडवावडे कराने
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