________________
महानुभाव आपकी कृपासे में केवलज्ञानी हुभा हूं। इस कारण मृगावतीने चंदनाकं सामने जो उसका आभार स्वीकार किया इस बातसे समझा जाता है कि उस मात्मामें केवलज्ञान हो जानेपर भी मोहभाव विद्यमान था।
अर्हन्त अवस्थामें श्री महावीर
स्वामीके रागभाव. यह पात दिगम्बरीय सिद्धान्तके अनुसार श्वेताम्बरीय लिद्धान्त भी पूर्णरूपसे मानता है कि मोहजनित राग द्वेष आदि दुर्भाव केवलज्ञान होने के पहले ही नष्ट होजाते हैं। केवलज्ञानके उदय समय रागद्वेष मादि दोष समूल नष्ट रहते हैं क्योंकि उनका उत्पादक मोहनीय कर्म उस समय तक बिलकुल नष्ट हो जाता है ।
किन्तु श्वेताम्बरीय कथा ग्रंथों में भगवान महावीर स्वामीके केवलज्ञान हो जाने पर भी मोहभाव प्रगट करने वाली चेष्टामों का उल्लेख है । वह इस प्रकार है
एक तो वंजाम्बरीय ग्रंथों में 'हे गौतम । इस सम्बोधनके साथ उसका उल्लेख है । परम वीतराग महावीर भगवान अपने उपदेश किसी एक व्यक्ति विशेषका संबोधन क्यों करें ? उनकेलिये तो गौतम गणधरके समान ही अन्य मनुष्य, देव, पशु, पक्षी थे। उस केवलज्ञानी दशामें गौतम गणधर ही एक परमप्रिय मित्र हों अन्य न हो यह तो असंभव है । वीतराग दशा होनेके कारण उनका न कोई मित्र ही कहा जा सकता है और न कोई शत्रु ही। इस कारण केवल गौतम गणधरका ही महावीर स्वामीके शब्दोंमें संबोधन बनता नहीं। फिर भी श्वेताम्बरीय शास्त्रोंने वैसा उल्लेख किया ही है। इसका अभिप्राय यह है कि वे शास्त्र श्री महावीर स्वामीके 'महन्त दशामें मोहमाव की सता बतलाते हैं ।।
तथा-मुक्ति प्राप्त करनेके दिन भी महावीर स्वामीके मोहभाव निम्न प्रकार प्रगट कर दिखाया है ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com