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. इस कथामें प्रथम तो यह बात ही बिलकुल असत्य है कि श्री महावीर स्वामीकी वंदनाके लिये चंद्रमा और सूर्य अपने विमान सहित कौशाम्बी नगरी में आये । क्योंकि यह असंभव बात है । स्वभावसे ही ज्योतिषी देव कल्पवासी देवोंके समान अपने मूल विमानों सहित यहां कभी नहीं आते न कभी पहले आये हैं और न कभी आवेंगे ।
चन्द्रमा सूर्यके मूल विमान सहित कौशांबी नगरीमें आनेकी निर्मल बातको इसी कारण श्वेताम्बरीय ग्रंथों में " अछेरा " कहकर न पूछने योग्य बतादिया है । सो बुद्धिमान मनुष्य इस असंभवित घटनाको कदापि नहीं स्वीकार कर सकते । यदि इस घटनाको हमारे श्वेताम्बरी भाई सत्य समझते हैं तो उन्हें यह बात मी झुठ नहीं मानना चाहिये कि
मुलतान नगरमें पहले शम्भस नामक एक मुसलमान फकीर रहता था उसके शरीरका कच्चा चमडा उतर जाने से उसका शरीर घृणित दीखता था इसी कारण रोटी पकाने के लिये कोई भी मनुष्य उसको अग्मि नहीं देता था तब उसने विवश ( लाचार ) होकर सूरजको मुलतानमें पृथ्वीपर उतारा और उसके ऊपर अपनी रोटियां पकाईं। इसी कारण उस दिनसे मुलतानमें अब तक असह्य-बहुत भारी-गर्मी पडती है।"
यदि श्वेताम्बरी भाई इस कहानीको कल्पित अत एव सर्वथा अ. सत्य समझते हैं तो उन्हें श्री महावीर स्वामीकी वंदनाके लिये अपने विमान सहित कौशांबीमें चन्द्रमा सूर्यके मानेको भी असत्य समझनेमें न चूकना चाहिये।
दुसरेकल्पित रूपसे ही मानलो कि यदि सूर्य चन्द्र कौशाम्बी में भाये तो और स्थानपर नहीं तो कमसे कम कौशाम्बीमें तो उनका प्रकाश अवश्य रहा होगा। फिर वहां चंदनाको कैसे रात दीख गई ?
तीसरे-केवलज्ञानकी उत्पत्तिकी बात भी बिलकुल असत्य है क्योंकि केवलज्ञान षट् आवश्यक करने या उसके अंशरूप प्रतिक्रमण करनेसे नहीं होता, न किसीके पैरोंपर पडनेसे होता है तथा न अपने अपराधोंकी क्षमा मांगने मात्रसे ही केवलज्ञान होता है । कंवलज्ञान
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