________________
( ७५ )
छठे - हरिणेगमेषी देवने महावीरस्वामीका गर्भ देवानंदा ब्राह्मणी के मुखसे निकाला ? या उदरसे निकाला ? अथवा योनिमार्गसे निकाला ? मुखसे तो इस कारण नहीं निकल सकता कि गर्भ औदारिक शरीरके रूप में था उस स्थूल औदारिक शरीरको बिना उदर आदि फाडे उदर तथा मुख मार्गसे निकालना असंभव है । यदि उस देवने गर्भको योनि मार्गसे निकाला तो कहना चाहिये कि ब्राह्मणी के यहां ही महावीर स्वामींने जन्म ग्रहण किया क्योंकि गर्भस्थ बालकका अपनी माताकी योनि से बाहर निकलना ही जन्म लेना कहलाता हैं
1
सातवें-लोकमें किसी साधारण मनुष्य को भी दो पिताओंका पुत्र कहना अपमानजनक समझा जाता है । फिर भी महावीरस्वामी तीर्थकर सरीखे लोकबंदनीय महापुरुषको ऋषभदत्त ब्राह्मण और सिद्धार्थ राजाका पुत्र कहना कितना घोर पापजनक वचन है ।
आठवें देवानंदा ब्राम्हणीके पेटसे निकालते समय महावीर स्वामी के शरीरपिंड के नाभितंतु वहीं पर टूट गये होंगे। तब फिर नाभितन्तु टूट जाने पर वह पिंड जीवित कैसे रहा : नाभितन्तु टूट जानेपर अवश्य मृत्यु हो जाती है ।
I
नौवें - देवानंदा ब्राम्हणीके पेटमें श्री महावीर स्वामी के आते समय देवानंदाको १४ स्वप्न दिखाई दिये थे तदनुसार उसके घर गर्मकल्याणक हुआ होगा । और त्रिशला रानीके पेट में पहुंचने पर उसको भी १४ स्वप्ने दिखाई दिये होंगे तो उसके यहां भी गर्भकल्याणक हुआ होगा । इस कारण श्रीमहावीर स्वामीके ६ कल्याणक हुए होंगे । यदि किसी एक स्थानपर ही गर्भकल्याणक हुआ तो प्रश्न यह है कि दूसरे स्थानपर क्यों नहीं हुआ ? क्योंकि माताके पेटमें आनेपर ही गर्मकल्याणक होता है । यदि गर्भकल्याणक दोनों स्थानोंपर नहीं हुआ तो यों कहना चाहिये कि श्री महावीर स्वामीके चार कल्याणक ही हुए, पांच नहीं !
अनेक प्रबल अनिवार्य दोष' उपस्थित होने से निष्कर्ष निकलता है कि श्री महावीर स्वामीका गर्भहरण नहीं हुआ
इत्यादि
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com