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करोंके समान श्री महावीर स्वामी का गर्भकल्याणक शायद इसी देवानंदाके घर हुआ होगा जिसका कि कुछ भी उल्लेख कल्पसूत्रमें नहीं दिया है। तीर्थकरके माता पिताके घर गर्भावतारसे छह मास पहले जो रत्नवर्षा होती है उसका भी यहां कुछ उल्लेख नहीं । इस तरह कल्पसूत्र तथा अन्य भी श्वेतांबरीय ग्रंथोंके अनुसार श्री महावीर स्वामीने ऋषभदत्त ब्राम्हण और देवानंदा ब्राम्हणीके यहां अवतार लिया।
इसके आगेका कृत्तांत कल्पसूत्रके २२ वें पृष्ठपर यों लिखा है
" यांथी चवीने पूर्व मरीचिभवमां बांधेला अने भोगववाने बाकी रहेला नीचर्गोत्रना कर्मयी सत्यावीशमे भवे ब्राम्हणकुंडगाममां ऋषभदत्त ब्राम्हणनी देवानंदा ब्राम्हणीनी कुक्षिमा ते उत्पन्न थयां । तेथी शक इन्द्र मा प्रमाण चिंतवे छ -- के एवी रीते नीच गोत्र कर्मना उदयथी अर्हत चक्री वासुदेव विगेरे अंत प्रमुख नीच कुलोमां आव्या छे भावे छे , भने आवशे पण जन्म लेवाने माटे ते भावं योनिमांथी निकलवू थतुं नथी नीकलता नथी अने नीकलशे नहीं। भावार्थ एवो छ के कदाचित् कर्मना उदयथी ते अर्हत विगेरेनो अवतार तुच्छ प्रमुख नीचगोत्रमा थाय पण योनिथी जन्म थयु नथी अने थशे नहीं।"
अर्थात्-उस वीस सागर आयुवाले प्राणत स्वर्गसे चयकर भगवान महावीर स्वामीका जीव पहले मरीचि ‘भवमें बांधे हुए और भोगनेके लिये शेष रहे नीच गोत्र कर्मके उदयसे २७ वें भवमें ब्राम्हणकुंड ग्रामनिवासी ऋषभदत्त ब्राम्हण की स्त्री देवानंदाके पेटमे आये हैं। इस कारण इन्द्र सोचता है कि इस प्रकार नीच गोत्र कर्मके उदयसे तीर्थकर, चक्रवर्ती, वासुदेव आदि अन्त्यज ( मेहेतर ) इत्यादि नीच कुलोमें गर्भरूपसे भाये हैं । आते हैं । और भावेंगे। किन्तु जन्म लेनेके लिये उनकी (नीच कुलीन माताओंकी योनिमेंसे निकलना नहीं होता है। अबतक उन नीच कुलीन माताओंकी योनिसे वे तीर्थकर आदि न तो निकले हैं न निकलते हैं और न निकलेंगे । सारांश यह है कि कदाचित् कर्मके उदयसे अत
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