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ऋषभदत्त
म्हणकी स्त्री देवानंदा ब्राम्हणी जो जालंधर गोत्रवाली थी उसके उदर में गर्भरूप से उत्पन्न हुए । वे कैसे गर्ममें आये ? कि ( आषाढ शुक्ला षष्ठी ) आधी रात के समय जब कि उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र चन्द्रमा योगको प्राप्त हुआ था, दिव्य ( स्वर्गके ) आहार, देव पर्याय और देवशरीरको छोडकर जत्र गर्भ में आये तब भगवान् मति, श्रुत, अवधिज्ञान सहित थे । जिस रातको श्रमण भगवान श्री महावीर स्वामी देवानंदा ब्राह्मणके गर्भ में आये उस रातको देवानंदा ब्राह्मणी चौदह बडे शुभ स्वप्न देख कर जाग गई ।
दिगम्बर सम्प्रदाय में जो तीर्थकर की माताको १६ स्वप्न दिखलाई देना बतलाया गया है उनमेंसे श्वेताम्बर सम्प्रदायने १ मीनयुगल ( मछलियों का जोडा ) २ सिंहासन ३ धरणीन्द्रका घिमान इन तीन स्वप्नोंको नहीं माना है तथा ध्वजाका स्वप्न अधिक माना है । शेष १३ स्वप्न दोनों सम्प्रदायोंके एक सरीखे हैं । उनमें अंतर नहीं है ।
इस प्रकार जब महावीर स्वामी देवानंदाके गर्भ में भागये तब सौधर्म इन्द्रने उनको अपने सिंहासन से उतरकर परोक्ष नमस्कार किया । इस बातको कल्पसूत्रके १७ वें पृष्ठपर यों लिखा है ।
' ते श्रमण भगवंत श्रीमहावीर प्रभु के जे आदिकर सिद्धिगति नामना स्थान प्रत्ये जवानी इच्छा वाला छे तेमने नमस्कार हो । ... ते देवानंदा ब्राह्मणीनी कुक्षिमां रहेला ते वीरप्रभुने हुं वंदना करुं हुं हुं अहीं रह्यो छु अने ते प्रभु कुक्षिमां रह्या छे. . ते करीने इन्द्र पूर्वाभिमुखे सिंहासन उपर बेठो "
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अर्थात् - वह श्रमण भगवान श्री महावीर स्वामी जो सिद्धशिला. जानेकी इच्छा रखनेवाला है उसको नमस्कार हो । उस देवानंदा ब्राह्मजीके पेट में रहनेवाले श्री वीर प्रभुको मैं वंदना करता हूं। मैं यहां हूं और वह भगवान देवानंदाके पेटमें है । ऐसा नमस्कार करके इन्द्र पूर्व दिशा में मुखकर सिंहासनपर बैठ गया ।
इस प्रकार सौधर्म इन्द्रको महावीरस्वामीके देवानंदा ब्राह्मणी के गर्भ में आनेका वृत्तान्त पहले से ही मालूम था तदनुसार अन्य तीर्थ
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