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दुवे कवोयसरीरा उवक्खडिया तेहि णो अठो, अस्थि ते अण्णे परिवासिए मज्जारकडए कुक्कुडमंसए तमाहाराहि तेण अट्ठो।" . संस्कृतच्छाया--" त्वया देवानुप्रिये ! श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यार्थं वे कपोतकशरीरे उपस्कृते, ताभ्यां नैवार्थः । अस्ति तवान्यं परिवासितं मार्जारकृतं कुक्कुटमांसकं तमाहर तेनार्थः ।"
यानी-हे देवानुप्रिये ! तुने भगवान महावीर स्वामीके लिए दो कबूतर बनाये हैं उनसे मुझे कुछ मतलब नहीं किंतु तेरे पास बिल्ली के लिए बना हुआ दूसरा कुक्कुटका ( मुर्गेका ) बासा मांस है उससे मतलव है उसे तू ले आ।
तदनंतर रेवतीको यह सुनकर आश्चर्य हुआ उसने पूछा तुमने मेरे घरकी बात कैसे जानी ? तब सिंहमुतिने रेवती से कहा कि मैंने जैसा तुझसे कहा है घैसा मैं सब जानता हूं। तब रेवतीने प्रसन्न होकर उसको वह सब दे दिया । इस दानके प्रभावसे रेवतीने देवायुका बंध किया।
सिंहमुनिने वह भोजन लाकर महावीर स्वामी के हाथमें छोडदिया और महावीर स्वामीने उस भोजन को खाकर पेटमें पहुंचा दिया। .. तदनन्तर १२७२ वें पृष्ठपर यों लिखा है--
"तएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स तमाहारं आहारियस्स ममणस्स विपुले रोगायके खियामेव उवसते । हहे जाए आरोग्गे वलियसरीरे तुट्टा समणा " इत्यादि ।
संस्कृत-" तदा श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य तमाहारमाहा. र्यमाणस्य विपुलो रोगातङ्कः क्षिप्रमेवोपशान्तः, हृष्टो जात आरोग्यो बलवच्छरीरः तुष्टाः श्रमणाः " इत्यादि ।
- यानी- तब उस आहारको करनेवाले श्रमण भावान महावीर स्वामीका प्रबल रोग व्याधि तुरन्त शान्त हो गई। भगवान प्रसन्न हुए, उनका शरीर नीरोग हुआ सब साधु सन्तुष्ट हुए। - भगवतीसूत्रके उल्लिखित कपोत, कुक्कुट, मार्जार शब्दों के
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