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बचाने के लिये ऐसा किया होगा। कोष इस विषयमें वे निर्णय दे सकते हैं जो कि श्वेताम्बरीय न हों अथवा जो श्वेताम्बरीय कोष भी हों तो भगबती सूत्रकी रचनाकालसे पहले समयके बने हों।
---- तथा-केवलज्ञानी महावीर स्वामीपर उपसर्ग होना यह भी सिद्धांतविरुद्ध बात है अत एव असत्य है । प्रकरण रत्नाकर (प्रवचनसारोद्धार) तीसरा भागके ११७ वें पृष्ठपर केवलज्ञान हो जानेपर प्रगट होनेवाले ११ अतिशयों में से तीसरा अतिशय यों लिखा है
पुवब्भवरोगादि उवसमंति नय होइ वेराई । ४४९ ॥
यानी-केवली के पहले उत्पन्न हुए रोग शांत हो जाते हैं और नया कोई रोग उत्पन्न नहीं होता।
मुनि आत्मारा जीने अपने जैनतत्वादर्श ग्रंथमें ३४ अतिशयों का वर्णन करते हुए ४ थे पृष्ठपर चौथा पांचवां अतिशय यों लिखा है
"साढे पच्चीस योजनप्रमाण चारोगसें उपद्रवरूप ज्वरादि रोग न होवे तथा वैर ( परस्पर विरोध ) न होवे ।"
कवली तीर्थकर भगवानके ये अतिशय जब नियमसे होते हैं तो क्या वे महावीर स्वामीके नहीं हुए थे ? यदि नहीं तो वे तीर्थकर केवली कैसे ? यदि उनके भी वे अतिशय थे तो उनके पास गोशालने प्राणघातक उपसर्ग कैसे किया ? दोनों बातोंमेंसे एकही सत्य हो सकती है कि या तो महावीरस्वामी पर उपसर्ग ही नहीं हुआ या केवलज्ञानीके उक्त पतिशय ही नहीं होते ।
सारांश- केवलज्ञानधारी श्री महावीरस्वामीपर उपसर्ग हुआ माननेसे निम्न लिखित दोष आते हैं ।
१-श्री महावीरस्वामी केवलज्ञानी थे उनके ११ अतिशय प्रगट हो चुके थे इस कारण श्वेताम्बरीय सिद्धान्त अनुसार भी उनपर तथा उनके समीप बैठे हुए दो साधुओंपर गोशालकी तेजोलेश्या द्वारा प्राणघातक उपसर्ग हो ही नहीं सकना । क्योंकि जिनके अलौकिक प्रभाव से जन्मविरोधी जीव भी जिनके चारों ओर २५। २५ योजन तक वैर
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