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है ? भगवती सूत्र के ऐसे उल्लेख से जैनधर्म और विशेषतया श्वेतांबर जैन धर्मका कितना भारी गंदा अपवाद हो सकता है ?
उक्त तीनों शब्दों का अर्थ अन्य प्राचीन कोष भी इसी प्रकार करते हैं । विश्वलोचन कोष टान्त बर्ग, ३८ वां श्लोक, u वां पृष्ठ
कुक्कुटस्ताम्रचूडे स्यात् कुक्कुभे वामिकुक्कुटे | निषादशूद्रयोश्चैव तनये त्रिषु कुक्कुटः ॥
यानी कुक्कुट शब्द के तीन वाच्य हैं मुर्गा अद्मिकुक्कुट, भीरजाति, शूद्रजाति, तथा पुत्र ।
कपोतः स्यात् कलरवे कवकाख्ये विहङ्गमे,
कलितं विदिताप्यासे स्वीकृतेऽप्यभिपत् । १०२ विश्वलोचन १३६ पत्र तान्तवर्ग १०२ श्लो. अर्थात् - कपोत शब्द कलरव, कवक ( कबूतर ) का वाचक है तथा सूक्ष्म शब्द के लिये भी कपोत शब्द आता है ।
मार्जार ओती खट्टा शे मुदिर: कामुकेऽम्बुदे । विश्वलोचन रान्तवर्ग २०८ वां श्लोक. अर्थात् - मार्जार, ओतु, खट्टाश, ये नाम बिल्ली के हैं । मेदिनी कोष में भी ऐसा लिखा है - कपोतः स्याच्चित्रकंठपारावतविहङ्गयोः । २
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अर्थ -- कपोत, चित्रकंठ, पारावत ये कबूतरके नाम हैं । इस प्रकार प्रायः सभी प्राचीन कोषोंमें कपोत, कुक्कुट, मार्जार शब्दोंका अर्थ कबूतर, मुर्गा और बिल्ली लिखा हुआ है। भगवती सूत्र के इन शब्दोंका अर्थ टीकाकारोंने बदलकर कुछ और किया है किन्तु वह अर्थ असंगत तथा निराधार बैठता है। दो, एक विद्वानों के मुख से यह भी मालूम हुआ कि कुछ श्वेताम्बरीय विद्वानोंने कोष बनाकर इन शब्दों के अर्थ अन्य और कर दिये हैं । परन्तु भगवती सूत्र के इस उल्लेख के अर्थका निर्णय उन कोषोंसे नहीं माना जा सकता क्योंकि उन्होंने इस दोष को
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