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नहीं सकतीं। अतः उनको छटा गुणस्थान भी नहीं हो सकता । मुक्ति तो चौदहवें गुणस्थानसे भी आगे होगी । ____ अतः सारांश यह है कि पुरुष का शरीर होनेपर भी भाव पलटनेसे मनुष्यके स्त्री, नपुंसक वेदका उदय हो आता है। इस बात को श्वेतांबरीय ग्रंथकार भी स्वीकार करते हैं। इसी भाववेद परवर्तन के अनुसार पुरुषाला शरीरधारीको मावों की अपेक्षा स्त्री, नपुंसक बतलाया है और उस अन्य भाव वेदधारी साधुको श्रेणीपर चढकर मुक्त होना बतलाया
किंतु यहां इतना ध्यान और रहे कि नौवें गुणस्थानके आगे यह कोई भी भाववेद नहीं रहता, केवल द्रव्य पुरुषवेद ही रहता है। इस कारण " वीस नपुंसयवेया" भादि गाथाका कथन भूतप्रज्ञापन भाववेदकी अपेक्षासे है । अतः सिद्ध हुआ कि पुरुषको ही मुक्ति होती है। यदि स्त्री पर्याय ही स वेदका अर्थ होता तो वह वेद नौवें गुणस्थान के भागे सर्वथा नष्ट हो जाना जो बताया है वह कैसे बन सकता है ?
क्या श्रीमल्लिनाथ तीर्थकर स्त्री थे ? इस हुंडावसर्पिणी युगके चौथे कालमें जो श्री ऋषभदेव, अजितनाथ भादि २४ तीर्थकर हुए हैं जिन्होंने क्रमसे अपने अने समयमें जैनधर्मका उद्धार, प्रचार किया है उनमें से १९ वें तीर्थकर का नाम श्री मल्लिनाथ थ । इन १९ वे तीर्थ कर के विषयों श्वेताम्बर सम्प्रदाय का यह कहना है कि ये पुरुष नहीं थे, स्त्री थे । उनका नाम यद्यपि शेताम्बरीय ग्रंथों में ' मल्लिनाथ ' ही लिखा है । अन्य प्राचीन श्वेता. म्वरीय ग्रंथकारोंकी बात तो एक ओर रहे किन्तु उसके नवीन प्रसिद्ध ग्रंथकार मुनि आत्मारामजीने जैनतत्वादर्श ग्रंथके २१३ पृष्टार तीर्थरों के ५२ बावन बोल बतलाते हुए इन १९ वें तीर्थकरका नाम 'श्री मल्लिनाथ ' ऐसा लिखा है । जिस शब्दके अंतमें 'नाथ' शब्द होता है वह पुल्लिंग ही समझा जाता है। इस कारण उनके लिखे अनुसार भी श्री मल्लिनाथ तीर्थकर पुरुष ही थे।
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