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तो वे देव और भोगभूमिया ही हजारों गुणे अच्छे रहे। वेदनीय कर्मने केवली भगवान्को उनकी अपेक्षा बहुत कष्ट दिया ।
दशवा एक अनिवार्य दोष यह भी आता है कि केवली भगवान् मल मूत्र करने के पंछे शौच ( गुदा आदि मलयुक्त अंगों को साफ ) कैसे करते होंगे ? क्योंकि उनके पास कमंडलु भादि जल रखने का बर्तन नहीं होता है जिसमें कि पानी भरा रहे ।
इत्यादि अनेक अटल दोष केवली के कालाहार करने के विषय में आ उपस्थित होते हैं जिनके कारण श्वेताम्बरी भाइयोंका पक्ष arest at के समान अपने आप गिरकर धराशायी हो जाता है । हमको दुख होता है कि श्वेतांबरीय प्रसिद्ध साधु आत्मारामजी बादिने केवलीका कवळाहार सिद्ध करनेमें असीम परिश्रम करके व्यर्थ समय खोया । वे यदि केवली भगवान के वीतराग पदका तथा उनके अनन्त चतुष्टयोंका जरा भी ध्यान रखते तो हमारी समझसे निष्पक्ष होकर इतनी भूल कमी नहीं करते ।
सारांश ९
यह सब लिखनेका सारांश यह है कि क्षुधा ( भूख ) एक अस दुख है जो कि अनन्त सुखधारक केवली के नहीं हो सकता; क्योंकि या तो वे असह्य दुःखधारी ही हो सकते हैं या अनन्त सुखबारी ही हो सकते हैं ।
तथा - भोजन करना रागभावसे होता है। बिना राग भावके भोजन करके अपना उदर तृप्त करना बनता नहीं । केवली भगवान् मोहनीम कमको नष्ट कर चुके हैं इस कारण रागभाव उनमें लेशमात्र भी नहीं रहा है । अतः वे रागभाव के अभाव में भोजन भी नहीं कर सकते । इसलिये या तो उनके कबलाहारका अभाव कहना पडेगा अथवा वीतरागताका अभाव कहना पडेगा ।
एवं भोजन न करनेपर भी केवली भगवानका ज्ञान न तो घट सकता है और न बल कम हो सकता है तथा न उनकी भोजन न कर
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