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रूपसे जैसे पुरुषोंने बलात् [ जबर्दस्ती ] ( सीता आदि ) स्त्रियों का अपहरण किया तथा बलात्कार ( जबर्दस्ती विषयसेवन ) किये त्था अब भी करते हैं, ऐसा पुरुषोंपर स्त्रियोंका बलप्रयोग आजतक नहीं हुआ है । पशुओं में भी हम देखते हैं कि एक सांड हजारों गायों के झुंडका झसन करता है।
जिन कठिनले कठिन कार्यों को पुरुष कर सकता है वे कार्य स्त्री से नहीं कर पाते । चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण, बलिभद्र, आदि उत्कृष्ट बलमारक पर पुरुषोंको ही प्राप्त होते हैं स्त्रियों को नहीं; ऐसा श्वेताम्लीय ग्रंथ भी स्वीकार करते हैं । देखिये प्रवचन सारोद्धार के ( तीसस भाग) ५४४-५४५ वें पृष्ठपर लिखा है कि
अरहंत चक्कि केसब बल संभिन्नेय चारणे पुन्वा ।
गणहर पुलाय आहारगं च नहु भविय महिलाणं ॥५२०॥ यानी-भव्य स्त्रियों के अर्हत, ( तीर्थ कर ) चक्रवर्ती, नारायण, बलिभद्र, सभिन्नश्रोता, चारणऋद्धि, पूर्वधारी, गणधर, पुलाक, आहारक ऋद्धि ये दश पद या लब्धियां नहीं होती हैं। ___ इसलिये व्यावहारिक दृष्टिसे भी पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियों में निर्वलता सिद्ध होती है। स्त्रियों की इस निर्बस्तासे यह भी अपने आप सिद्ध होता है कि स्त्रियां कठिन परीषहोंको सहन करती हुई निश्चल रूपसे घोर तपस्या नहीं करसकतीं; इसीसे शुक्ल ध्यान प्राप्त कर वे मोक्ष भी नहीं पा सकती।
निर्बलता के कारण ही स्त्रियोंमें पुरुषों के समान उच्च कोटिकी निर्भयता, आदर्श पराक्रम, प्रबल साहस और प्रशंसनीय धैर्य भी नहीं होता है। उनका शरीर स्वभावसे पुरुषोंकी अपेक्षा कोमल, सुकुमार, नाजुक होता है । इसी कारण उन्हें अबला कहते हैं । अत एव स्त्रियां पर्वत, बन, गुफा, मशान आदि भयानक स्थानोंमे अटल, निर्भय रूपसे ध्यान तपश्चरण नहीं कर सकतीं। उनसे मातापनयोग, प्रतिमायोग आदि नहीं बन सकते हैं।
सुकुमाल, सुकोशल, गजकुमार, पांडव, मादि मुनीश्वरों के समान
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