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हो तो भी उसको नया मुनि नमस्कार नहीं करेगा किंतु वह आर्यिका ही उस नवीन मुनिकी वंदना करेगी । इससे सिद्ध होता है कि पुरुष जाति स्त्रियोंकी अपेक्षा ऊंचे दर्जे की है।
प्रकरण रत्नाकर (प्रवचन सारोद्वार तीसरा भाग ) के २५७ ३ पृष्ठपर लिखा है कि- .. ___" साधुओ पोताथी जे पर्यायवृद्ध साधु होय तेने वंदन करे अने साध्वीओ पर्यायज्येष्ठ छता पण माजनां दीक्षित यतिने पुरुष ज्येष्ठ धर्मपणा थकी वांदे ।"
यानी-साधु अपनेसे पहले दीक्षा लेनेवाले साधुकी वंदना करें और साध्वी ( आर्यिका) पुरानी दीक्षित होनेपर भी भाजके दीक्षित साधुकी वंदना करे क्योंकि पुरुषमें बडप्पन धर्म रहता है ।
इस श्वेतांबरीय शास्त्रवाक्यसे भी यह सिद्ध हुआ कि पुरुष स्वभावतः स्त्रियोंसे अधिक महत्व रखता है । इस स्वाभाविक महत्वके कारण ही पुरुष धबसे ऊंचं पद मोक्षको पा सकता है, स्त्री नहीं। - दुसरे-स्त्री पर्याय श्वेतांबरीय सिद्धांतकारोंके लेखानुसार पापरूप है और पुरुष की पर्याय पुण्यरूप है । देखिये श्वेताम्बरीय तत्वार्थसूत्र जिसको श्वेताम्बरी माई तत्वार्थाधिगमसूत्र कहते हैं। ( इसमें तथा दिगम्बर सम्प्रदायके मान्य तत्वार्थाधिगमसूत्र में अनेक सत्रों में कमी वेशी भी है) उसके आठवें अध्यायका अंतिम सूत्र यह है
सद्वेद्यसम्यक्त्वहास्यरतिपुरुषवेदशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम् - यानी- साता वेदनीय, सम्यक्त्व प्रकृति, हास्य, रति, पुरुषवेद, शुभ आयु, शुभनाम कर्म और ऊंच गोत्र ये आठ पुण्यकर्म हैं।
इसी सत्रके सूत्रकारविरचित भाष्यमें लिखा है कि___" इत्येतदष्टविधं कर्म पुण्यम्, अतोऽन्यत्पापम्" . . यानी-ये आठ प्रकारके कर्म पुण्यरूप हैं और इनके सिवाय शेष सब कर्म पापरूप हैं। . इस कारण स्त्री शरीर का मिलना पापरूप है - पापकर्मका फल है
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