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इस लिये भी स्त्री मोक्षकी अधिकारिणी नहीं है । पुरुष कर्मसिद्धान्त के अनुसार पुण्यरूप होता है इस कारण मुक्त प्राप्त कर सकता है ।
तीसरे - सम्यग्दर्शन वाला जीव मर कर स्त्री पर्याय नहीं पाता पुरुषका शरीर ही धारण करता है । इस कारण भी स्त्री पुरुषसे हीन ठहरती है । क्योंकि स्त्रीशरीर हीन है तब ही सम्यग्दृष्टी जीव परभवमें सम्यग्दर्शन के प्रभाव से स्त्री शरीर नहीं पाता शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है कि सु डिहिमासु पुढविसु जो इसवणभवणसव्वइत्थीसु । बारसु मिच्छ्ववादे सम्माही ण उप्पज्जदि ॥
यानी — सम्यग्दृष्टी जीव मरकर पहले नरक के सिवाय छह नग्कोंमें, ज्योतिषी, व्यन्तर, भवनवासी देवोंमें तथा सब प्रकारकी ( देवी, नारी, पशु मादा ) स्त्रियों में उत्पन्न नहीं होता ।
इसलिये भी स्त्री, पुरुषकी अपेक्ष हीन होती है,
चौथे इंद्र, चक्रवर्ती, मंडलेश्वर, प्रतिवासुदेव, बलभद्र, नारद, रुद्र आदि जगत्प्रसिद्ध पदधारक पुरुष ही होते हैं स्त्रियां नहीं होती । इस कारण भी पुरुष स्त्रियोंसे उच्च होते हैं और स्त्रियां उनसे हीन होती हैं।
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पांचवें - आनत आदि विभानवासी देव मरकर श्वेताम्बरीय शास्त्रों के अनुसार भी पुरुषपर्याय ही पाते; पुरुष उच्च होते हैं और त्रियां हीन होती हैं यह बात इससे भी सिद्ध होती है। देखिये प्रकरण रत्नाकर ( चौथा भाग ) के ७७-७८ वें पृष्टपर लिखा है कि-
आणयपमुहा चविडं मणुएसु चैव गच्छति । १६५ ॥ यानी - आनत आदि स्व के देव मरकर पुरुषों में ही उत्पन्न होते हैं। जब कि मैत्रेयक, अनुत्तर विमानवासी देव मरकर मनु यही होते हैं स्त्री नहीं होते तो मानना ही होगा कि मनुष्य स्त्रियों की अपेक्षा उच्च होते हैं- स्त्रियोंसे अधिक महत्वशाली होते हैं । इसी कारण मुक्ति भी वे ही प्राप्त कर सकते हैं, स्त्रियां मोक्ष नहीं पा सकतीं ।
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