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कपड़ों के
विना उसका
वस्त्र एक आत्मा से जुदा
रहना होगा क्योंकि उन काम नहीं चल सकता । है । उसकी रक्षा के लिये सावधान होना यह ही मूर्छा है, पवस्तुका राग है, मोह है और लोभ कषाय है, ममत्व है । इसके रहते स्त्री महाव्रतधारिणी कैसे हो सकती है ?
उसका
इस रीति से
।
यदि कोई आर्यिका ( साध्वी ) ध्यान कर रही हैं, कपडा उस समय वायु आदिसे उसके शरीर से उतर गया तो उस समय उसको उस कपडको संभालने के लिये ध्यान छोडना होगा। मी यदि देखा जावे तो वस्त्र संयमको बिगाडनेका साधन है कडोंमें शरीर के पसीनेसे जूं, लीक आदि सम्मूर्छन जीव उत्पन्न हो जाते हैं तथा चींटी खटमल, मच्छर आदि जीव जंतु इधर उधरसे कडोंमें आकर रह जाते हैं। उन जीवोंका शोधना शरीर से उतारकर झाडे फटकारे आदि बिना नहीं हो सकता । और झाडने फटकारने से उन जीवोंका घात होता है । इस कारण कपडोंके उठाने, रखने, सुखाने, धोने, फाडने, फटकारने आदि कार्योंसे असंयम होता है । अत एव स्त्रीको वस्त्रोंके कारण निर्दोष संयम नहीं हो सकता और निर्दोष संयम हुए विना मोक्ष नहीं मिल सकती ।
संयमी की उच्च दशा वस्त्ररहित नमरूप है । उस दशाको विना प्राप्त किये अंतरंग शुद्धि नहीं होती है । अतएव वस्त्रत्याग किये बिना मुक्ति नहीं हो सकती । इस कारण स्त्रीको यथाख्यात चारित्र तथा मुक्ति होना असंभव है ।
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किसी तरह
अन्य पदार्थ
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वस्त्रोंके कारण साधु, साध्वीका परिग्रहत्याग महाव्रत तथा अहिंसा महाव्रत नहीं बन सकता है । इसका अच्छा खुलासा ' गुरूका स्वरूप नामक प्रकरण में आगे करेंगे इस कारण इसको यहीं पर समाप्त करते हैं स्त्रियोंकी शारीरिक रचना.
स्त्रियों के शरीरकी रचना भी उनको मुक्ति प्राप्त करनेमें बाधक कारण है । उनकी शारीरिक रचना उनके हृदय में परमपवित्रता नहीं आने देती जिससे कि स्त्रियोंको अप्रमत्त आदि गुणस्थान तथा सकल
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